पढ़िए युवा कवि नेमीचंद मावरी की सुंदर रचना-मैने जीना सीखा है
मैंने जीना सीखा है
सस्ताई में महँगे का भी सौदा करना सीखा है,
जमीं पे नीड़ बना मैंने अंबर में उड़ना सीखा है
अब जीने की आदत को तू भले भुलाना चाहे जिंदगी,
उठकर गिरना,गिरकर उठना, पर बस बढ़ना सीखा है।
आँखों हँसती रही और आँसू को किया दफन पीछे,
दुत्कारा दुनिया ने भले, मगर अपनी नजरों में ना गिरा नीचे,
सच्चाई से ना हटा कदम झूठे वार भी सहे कई बार,
झुका ना पाए कोई तूफ़ाँ बना ना पाए कभी लाचार,
फौलाद लिए हाथों ने सदा पत्थर को गढ़ना सीखा है,
सागर की गहराई से जिंदगी पर्वत पर चढ़ना सीखा है।
पता नहीं क्यों इस जमाने में सदा दिखी चतुराई है,
बहुत संभलकर रिश्ते बाँधे पर सबको लगी निठुराई है,
कुछ खेमों की किस्सागोई बिसात मेरे जीवन में रच गई,
ऐसा लगा जैसे कलियुग के ठेकेदारों की महफ़िल सज गई,
आज अपने नहीं अपनों के लिए थोड़ा सा डरना सीखा है,
हाँ! शत्रु नहीं कोई पर थोड़ा खुद से भी लड़ना सीखा है।
कविता-दो
हर हाल में जिओ
अगर जीने की जिद्द है तो हर हाल में जिओ,
अगर जीने का का जुनूँ है तो तंगहाल में भी जीओ,
बारिश में भी जीओ, तूफ़ानों में भी जीओ,
नदिया की धारा बन जीओ, समंदर की लहरें बन जीओ,
मौत के हर बहाने से भी बहाना बना कर जीओ,
डर के हर साये को भी डराकर जीओ,
हर लम्हे में खुशियों के तराने गाकर जीओ,
रोते हुए चेहरे पर झूठी मुस्कान लाकर ही जीओ,
मगर जीने का मकसद है तो हर हाल में जीओ,
निराशाओं में भी आशाओं के दीप जलाकर जीओ,
दुःख में अपनों को भी आजमाकर जीओ,
फिर भी अगर खौफ तुम्हारे दर पर दस्तक दे रहा हो,
तो खौफ को सिरहाने लगाकर जीओ।
आसमां की ऊँचाई जितनी सिफारिशें करो भले जिंदगी से,
जितना भी जीओ जिंदगी से दिल लगाकर जीओ।
मौलिक व स्वरचित
नेमीचंद मावरी “निमय”
(युवाकवि, लेखक, रसायनज्ञ)
पिता- हुकमचंद मावरी
माँ- निर्मला देवी
बूंदी, राजस्थान
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
सफलता के लिए संघर्ष पर आधारित बहुत सुंदर रचना है भैया????