Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 14, 2024

पढ़िए कवि ललित मोहन गहतोड़ी का स्वरचित भजन-मैं टालता गया

पढ़िए कवि ललित मोहन गहतोड़ी का स्वरचित भजन-मैं टालता गया।

मैं टालता गया

मैं टालता गया…
जो अवसर आया…
जो अवसर आया मैं टालता गया
जो अवसर आया मैं टालता गया
मैं टालता गया मैं टालता गया
जो अवसर आया…

बचपन में शरारत हावी रही
जवानी फिरा भर गली गली
जहां रहती थी अनछुई कली
मच जाती दिखते खली बली
बुढ़ापा भी जोर अकड़ गुजरा
मद चूर रहा मैं टालता गया
जो अवसर आया…

एक भजन भी ऐसा सुना नहीं
जिसे मन ही मन में गुना नहीं
इक वचन ही ऐसा कहा नहीं
जो दिल ही दिल में बसा नहीं
बसा नहीं मैं जाके फंसा नहीं
बेकाम सा लगा मैं टालता गया
जो अवसर आया…

इक नाम तो मुझको गुनना था
एक नाम ही मुझको सुनना था
इक नाम तो मुझको भजना था
एक नाम ही मुझको रटना था
सत नाम तो संग संग चलना था
नहीं सूझा सुझाए मैं टालता गया
जो अवसर आया…

कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page