पढ़िए कवि ललित मोहन गहतोड़ी का स्वरचित भजन-मैं टालता गया

मैं टालता गया
मैं टालता गया…
जो अवसर आया…
जो अवसर आया मैं टालता गया
जो अवसर आया मैं टालता गया
मैं टालता गया मैं टालता गया
जो अवसर आया…
बचपन में शरारत हावी रही
जवानी फिरा भर गली गली
जहां रहती थी अनछुई कली
मच जाती दिखते खली बली
बुढ़ापा भी जोर अकड़ गुजरा
मद चूर रहा मैं टालता गया
जो अवसर आया…
एक भजन भी ऐसा सुना नहीं
जिसे मन ही मन में गुना नहीं
इक वचन ही ऐसा कहा नहीं
जो दिल ही दिल में बसा नहीं
बसा नहीं मैं जाके फंसा नहीं
बेकाम सा लगा मैं टालता गया
जो अवसर आया…
इक नाम तो मुझको गुनना था
एक नाम ही मुझको सुनना था
इक नाम तो मुझको भजना था
एक नाम ही मुझको रटना था
सत नाम तो संग संग चलना था
नहीं सूझा सुझाए मैं टालता गया
जो अवसर आया…
कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।