पढ़िए जनकवि डॉ. अतुल शर्मा की कविता-जहां रहता हूं
जहां रहता हूं
आसपास जो खेत है
उनमे फसलों का उगना
निरंतर उगते रहने को कह रहा है
जहां मै रह रहा हूं
वहां के कूंए
पानीदार होने को कह रहे है
जहां रह रहा हूं
वहां पर एक डेरी है
सुबह से शाम तक होने वाले काम
परिश्रम का संदेश दे रहे हैं
जहां रह रहा हूं
वहां पर बहुत सी कहानियां है
और सामने से दिखते शिवालाक के पहाड़
पेंटिग की तरह उपस्थित हैं
सूरज के साथ और उससे भी पहले शुरु हो जाती है दिनचर्या
अभी कुछ दिनो पहले
छियानबे बरस की बूढी दादी
आई है
बिना चश्मे के सिल रही है अपने कपडे
सब कुछ अपने आप करने को कहती हूई
यहां की बहती नहर
समय की तरह बह रही है
जहां मै रह रहा हूं
वहां जो और भी बहुत रह रहा है
वह मेरे भीतर
रक्तशिराओं मे बह रहा है
जहां मै रह रहा हूं
वहां कभी चाय के बागान थे
समय के साथ
गायब हो गये
यहीं रहते हूए
एक लोक कथा मे रहने का अहसान लिए
लिख रहा हूं किताबे
जो जमीन से जुड़ी हैं
जमीन
जहां मै रह रहा हूं
किराये पर ।
कवि का परिचय
डॉ. अतुल शर्मा (जनकवि)
बंजारावाला देहरादून, उत्तराखंड
डॉ. अतुल शर्मा उत्तराखंड के जाने माने जनकवि एवं लेखक हैं। उनकी कई कविता संग्रह, उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनके जनगीत उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की जुबां पर रहते थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।