पढ़िए ललित मोहन की हिंदी कविता, लाट-साप
“लाट-साप”
मैं होता,
किसी देश का राजा।
ठाठ बाठ से रहता।।
दिनभर की,
चिलचिली धूप में।
क्यों कर भागा फिरता।।
होती रानी संग पटरानी,
बाग बगीचे जाता।
जीवन में झंझट नहीं होता,
मजे मजे में जीता।।
होते हजारों नौकर चाकर,
दिल बन मोर मचलता।
कोरी कारी कचकच बाजी,
किसी की भी नहीं सुनता।।
बंद आंख सपने बुनता हूं,
खुली आंख हूं खोता।
आई है भरपूर जवानी,
खाट हूं लेटा रहता।।
सोते सोते उठ जाता हूं,
उठते उठते सोता।
उलझन दिल की सुलझाता हूं
यूं नाहक नहीं होता।।
बैठा रहता सिंघासन में,
सबको आज्ञा देता।
काश में राजा बन जाता तो,
लाट-साप मैं होता।।
कवि का परिचय
ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।