पढ़िए गिरीश बेंजवाल की गढ़वाली बाल कविता अपणु काम अप्फु निभौण
अपणु काम अप्फु निभौण
अपणा प्रति सजग रौण
कामा प्रति तत्पर रौण ।
खाण – प्योण – स्वस्थ रौण
साफ – सफै ध्यान द्यण ।
ब्वन – हिटण – देखि – समळी
सबु दगड़ि भलु रौण ।
जरुरि चीज समाळी रखण
बिसन नी, न त हरचौण ।
जैन कैतै सुदि नि द्यौण
जल्दि स्यौण – जल्दि उठण
अपणु काम अप्फु निभऔण ।
धैर्य धन, साहसी ह्वोण
बुद्धि – विवेक से काम ल्योण ।
कविता-2
यीं जन्मभूमि का बाना
यीं मातृभूमि का पिछने
जून अपणा प्राण गवैन
जून कष्ट – मुसीबत सैन
हम याद करी तूंकी
जय – जयकार करी ऊंकी
सदा सीख तूं से ल्यूला
मातृभूमि सेवा अपनोला
हम आज कसम या खोला
हम जीवित जब तक रोला
मातृभूमि की सेवा मा
मातृभूमि की रक्षा मा
अपणू फर्ज निभौला
अपणू फर्ज निभौला ।
कवि का परिचय
नाम-गिरीश बेंजवाल
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राधमिक विद्यालय
सौड़ी गिंवाला, अगस्त्यमुनि जनपद रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड।