पढ़िए दीनदयाल बन्दूणी की तीन गढ़वाली गजल
पुरणि याद
फाणा- पंगतौंम बैठि, कबि खॉड़ु खायी तुमन.
हतौंम हत डाऴि , झौंड़ा-चौंफऴा गायी तुमन..
खॉड़ा की पंगत्यूंम बैठि, यख पंगत नि तोड़दा.
कबि बे-लैन ह्वे , सर्यूऴा झपाक खायी तुमन..
ह्यूंदी का दिनौं , उत्तरैंण बटि पंचमी तलक.
बेटि-ब्वार्यूं दगड़ , थड़्या – गीत गायी तुमन..
ब्यो-काजौं म , कनु भलु स्वांणु रिवाज़ यख.
बिन बोल्यां-चल्यां , अपणु काम कायी तुमन..
यखा हवा – पांणी बि , कनि बिगरैलि च.
तिड़दा हूंट , देखि ह्वेलि पड़दि छायी तुमन..
मेरा मुलका रै , सदनि अलग सी पच्छ्याण.
साक्षात देवि-द्यवतौं , आशीष पायी तुमन..
यखा काणि-किस्सा बि , कन अणकसि छन.
भूत सि दिखेंद , दिखि अपड़ि परछायी तुमन..
मिलि- जुली रात म , छ्वीं- बतौं सौगात म.
दगड़्यूं दगड़ मिलि-बैठि , खॉणु खायी तुमन..
‘दीन’ अहा ! ओ पुरणि बात , ओ पुरणि याद.
कोरि छ्वीं “
कोरि छ्वीं- बतौं , गॉणि – स्यॉणि रैगीं अब.
सार छोड़ि , सगोड़्यूं गूणि- बांदर खैगीं अब..
कैम सुड़ॉड़- बतॉड़ , कनम ज्यू हल्कु करण.
ज्यू डरोड़्यां , क्वारा काल़ा बादळ छैगीं अब..
फ्री खॉड़ि , सस्तु नाज-पॉड़ि कबतक मीललु.
स्यो ! कनि भानि सेरि- घेर्यूं , सुंगर बैगीं अब..
त्यारु मुक मीं देखुलु , म्यारु तू देखि बैठि-बैठीं.
गल्वड़ि पिचकी, दॉत-पाटी ख्वल्वा ह्वेगीं अब..
ज्यू बोनू कुछ बोनाऽ, कानि-किस्सा सुड़ौंड़ौं.
एक कुकर- द्वी बिरळा , सुड़ाड़ॉ रैगीं अब..
चिठ्यूं कू जमनु छौ , लेखदा छा दिला बात.
फोनों म नि बोलिंदु , टावर खराब ह्वेगीं अब..
‘दीन’ ! कैकि हंत्या-असगार लगि ह्वेलि कुजड़ि.
” गढ़नारि “
सचम ! गढ़नारि , तेरि खैरि नि देखि कैल.
तेरि जिकुड़ि भितरै , सचै नि लेखि कैल..
तिल-तिल करि पिसे , दिन- ब- दिन रात.
तु ह्वेकि बि – रै सदनि , नि ह्वेकि किलै..
अपड़ि शान- पैचान , सब तिन भुलायी.
जिंदगी बितै , तिन र्रवे – र्रवेकि किलै..
जन्मी पूत – सपूत , भेजीं देश सेवम.
अब खुदेंदि , डांडि – सार्यू़ं जैकि किलै..
घार कु भार तिन , तौं कॉंद्यूंम उठायी.
गुम-सुम बैठीं , कांजोळ मुखड़ि कैकि किलै..
ऴाऴा – बाऴा छन , त्यारु नौं पैलि ल्याला.
बोलि नि पांड़ीं छै , बोल खुश ह्वेकि किलै..
‘दीन’ तेरि खैरी-बिपत फरि , इत्यास लिखेलु.
रुसौ न अपड़ौं से, बैठीं मुक फरकैकि किलै..
कवि का परिचय
नाम .. दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव.. माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य
सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।