पढ़िए दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली कविता-इष्ट द्यवतौं बंदना
“इष्ट द्यवतौं बंदना”
” दोहे “
जख भी रौंला हम सदनि, लिंदवां तुमरू नाम.
तुम इष्ट देवता हमरा , बड़ैं – बिगड़दा काम..
छाया- माया तुमरि प्रभु, रैंद हम फरि सदान.
हमन रात-दिन हरबगत, कार तुमरु गुणगान..
हमर पुरखौंन मान दे , कार तुमरू सम्मान.
बरकत दियां द्यवतौ तुम, हम भी रखला ध्यान..
एक चुंगटि बभूता की , करि दींद बेड़ा पार.
किलै नि लिवां नौं तेरू , मिली के बारंबार..
शक्ति -भक्ति कू खेल यो, जॉड़ हमन पैचॉड़.
तिन भी त हम सब्यूं तैं , दीसा- धयड़ीं मान..
तृण डाऴि मुक-गौबंध ह्वे, भगत चरणौंम आय.
चौंऴ छड़कि बभूत लगै, सबकू भलु तिन काय..
लौंग- लाख म मानि जांदि, तुमरू हमसे प्यार.
हमभी सौग – भगत छवां , हे कुल इष्ट तुमार..
सामर्थ हमतैं दे हे इष्ट , शरण पड़ी हम आज.
‘दीन’ एकमन-एकचित्त ह्वे, करवां पूजन काज..
कवि का परिचय
नाम .. दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव.. माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य
सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।