Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

September 20, 2024

उत्तराखंड में सबसे कम उम्र के सीएम होंगे पुष्कर धामी, कल लेंगे शपथ, जानिए उनका राजनीतिक व सामाजिक संघर्ष

1 min read
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद से तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद अब पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री होंगे। उनके नाम पर आज भाजपा प्रदेश कार्यालय में विधानमंडल दल की बैठक में मुहर लगा दी गई।

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद से तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद अब पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री होंगे। उनके नाम पर आज भाजपा प्रदेश कार्यालय में विधानमंडल दल की बैठक में मुहर लगा दी गई। ये बैठक शनिवार 3 जुलाई की दोपहर बाद तीन बजे से पर्यवेक्षक एवं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर एवं प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम की उपस्थिति में हुई। बाद में केंद्रीय पर्यवेक्षक ने पत्रकारों के समक्ष भी इसकी घोषणा की। कहा कि किसी ओर के नाम की चर्चा नहीं हुई। सिर्फ पुष्कर सिंह धामी का नाम रखा गया और सबकी सहमति से इस पर मोहर लगा दी गई। इस बार भाजपा ने तमाम अनुभवी विधायकों को दरकिनार करते हुए युवा चेहरे को तवज्जो दी। वह कल रविवार शाम पांच बजे राजभवन में सीएम की शपथ लेंगे। नाम की घोषणा होने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने पत्रकारों से कहा कि हम चुनौती को स्वीकार करते हैं। पुराने कार्यों को आगे बढ़ाएंगे। संगठन के कार्यों को भी आगे बढ़ाएंगे। भाजपा आलाकमान का धन्यवाद भी अदा किया। धामी उत्तराखंड के सबसे कम उम्र वाले मुख्यमंत्री होंगे। वह 45 साल की उम्र में सीएम बनने जा रहे हैं। इससे पहले रमेश पोखरियाल निशंक 49 साल की उम्र में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने थे। 70 विधानसभा सीट वाले उत्तराखंड में 57 विधायक भाजपा के हैं। साढ़े चार साल में भाजपा ने तीसरा सीएम दिया  है।

पुष्कर सिंह धामी का जीवन परिचय
पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड में खटीमा विधानसभा से विधायक हैं। उत्तराखंड प्रदेश के अति सीमान्त जनपद पिथौरागढ की ग्राम सभा टुण्डी, तहसील डीडी हाट में उनका जन्म 16 सितंबर 1975 को हुआ। सैनिक पुत्र होने के नाते राष्ट्रीयता, सेवा भाव एवं देशभक्ति को ही धर्म के रूप में अपनाया। आर्थिक आभाव में जीवन यापन कर सरकारी स्कूलों से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। तीन बहनों के पश्चात अकेला पुत्र होने के नाते परिवार के प्रति जिम्मेदारियां उन पर हमेशा बनी रही।
शैक्षिक योग्यता – स्नातकोत्तर
व्यावसायिक – मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध के मास्टर
राजनितिक दल का नाम : भारतीय जनता पार्टी
प्रारंभिक जीवन
बचपन से ही स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस इत्यादी शाखाओं में प्रतिभाग एवं समाजिक कार्यो को करने की भावना तथा छात्र शक्ति को उनके हकों एवं उत्थान के लिए एक जुट करने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ने के मुख्य कारक रहे हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रों को एक जुट करके निरन्तर संधर्षशाील रहते हुए उन्होंने छात्रों के हितों की लड़ाई लड़ी।
राजनीतिक जीवन
सन 1990 से 1999 तक जिले से लेकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में विभिन्न पदों में रहकर विद्यार्थी परिषद में कार्य किया है। इसी दौरान अलग-अलग दायित्वों के साथ-साथ प्रदेश मंत्री के तौर पर लखनऊ में हुये अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सम्मेलन में संयोजक एवं संचालन कर प्रमुख भूमिका निभाई।
राज्य की भौगोलिक परिस्थियों को नजदीक से समझते हुए क्षेत्रीय समस्याओं की समझ और उत्तराखंड राज्य गठन के उपरान्त पूर्व मुख्यमंत्री जी के साथ एक अनुभवी सलाहकार के रूप में 2002 तक कार्य किया। कुशल नेतृत्व क्षमता, संधर्षशीलता एवं अदम्य सहास के कारण दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सन 2002 से 2008 तक छः वर्षो तक लगातार पूरे प्रदेश में जगह-जगह भ्रमण कर युवा बेरोजगार को संगठित करके अनेकों विशाल रैलियां एवं सम्मेलन आयोजित किये गये।
संधर्षो के परिणाम स्वरूप तत्कालीन प्रदेश सरकार से स्थानीय युवाओं को 70 प्रतिशत आरक्षण राज्य के उद्योगों में दिलाने में सफलता प्राप्त की। इसी क्रम में दिनांक 11.01.2005 को प्रदेश के 90 युवाओं को जोड़कर विधान सभा का धेराव हेतु एक ऐतिहासिक रैली आयोजित की गयी जिसे युवा शक्ति प्रदर्शन के रूप में उदाहरण स्वरूप आज भी याद किया जाता है।
कुशल नेतृत्व क्षमता तथा शैक्षिणिक एवं व्यावसायिक योग्यता के कारण पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में वर्ष 2010 से 2012 तक शहरी विकास अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यशील रहते हुए क्षेत्र की जनता की समस्याओं का समाधान कराने में आशातीत सफलता प्राप्त की। इसका प्रतिफल जनता द्वारा 2012 के विधान सभा चुनाव में विजयश्री दिलाते हुए अपने जनप्रिय विधायक के रूप में विधान सभा में पहुंचाया। खटीमा से वह लगातार दो बार 2012 से अब तक विधायक हैं। उनका कहना है कि सीएम के रूप में क्षेत्र और राज्य की जनता से मेरा यही निवेदन है कि अपनी समस्याओं के समय-समय पर अवगत कराते रहें, जिससे मैं उन्हे विधानसभा में सरकार के सामने प्रमुखता से उठाते हुए उनका निराकरण आपके सहयोग से समय पर करा सकूं। मेरे द्वारा सदैव आपके स्वागत के लिए खुल हैं। सभी लोग, सभी वर्ग, सभी क्षेत्रों में जाति-धर्म के विचार से ऊपर उठकर सामाजिक उत्थान के लिए मिलजुलकर कार्य करें।
ये है घटनाक्रम
रामनगर में आयोजित भाजपा के तीन दिनी चिंतन शिविर में भाग लेकर मंगलवार शाम को पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत देहरादून पहुंचे थे। बुधवार सुबह वह दिल्ली के लिए रवाना हो गए। देर रात ही उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात करने की सूचना मिली। इसके साथ ही कई तरह की चर्चाओं ने तेजी से जोर पकड़ा। ये बुलावा भी अचानक आया। बुधवार के उनके कई कार्यक्रम उत्तराखंड में लगे थे। उन्हें छोड़कर सीएम को दिल्ली दरबार में उपस्थित थे। बताया गया कि पार्टी हाईकमान ने उन्हें दिल्ली तलब किया। इस बीच तीरथ सिंह रावत ने उसी रात राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। वह गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले। इसके बाद शुक्रवार दो जुलाई को उत्तराखंड में उपचुनाव कराने को लेकर चुनाव आयोग को पत्र दिया। हालांकि चुनाव आयोग पहले ही कोविड काल में उपचुनाव कराने से मना कर चुका था। चुनाव आयोग को पत्र देने के बाद सूचना आई कि संवैधनिक संकट का हवाला देकर तीरथ ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफे की पेशकश की।
इसके बाद तीरथ सिंह रावत देहरादून पहुंचे और रात करीब नौ बजकर 50 मिनट पर उन्होंने सचिवालय में प्रेस कांफ्रेंस की और अपनी उपलब्धियां गिनाई। साथ ही सरकार के आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी। इसके बाद वह देर रात करीब 11 बजकर सात मिनट पर राजभवन पहुंचे और अपना इस्तीफा दिया। इसके बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के कारण संवैधानिक संकट खड़ा हुआ। इसलिए मैने इस्तीफा देना उचित समझा। उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व का धन्यवाद किया।
तीरथ का ये फंस गया था तकनीकी पेंच
उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्द्वानी विधानसभा सीटें मौजूदा विधायकों की मौत की वजह से खाली हैं। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होगा। इस विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में 9 महीने ही बचे हैं। वहीं, लोकसभा सदस्य तीरथ सिंह रावत ने दस मार्च को सीएम पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के छह माह के भीतर विधायक बनना जरूरी था। 9 सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर तीरथ सिंह रावत के बने रहने संभव नहीं था।जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के तहत, उस स्थिति में उप-चुनाव नहीं हो सकता, जहां आम चुनाव के लिए केवल एक साल बाकी है। वहीं तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानसभा का उपचुनाव लड़ना और जीतना जरूरी था। चुनाव आयोग कोविड की वजह से उपचुनाव कराने से पहले ही मना कर चुका था। ऐसे में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
दोहराई गई पुरानी कहानी
पिछली कहानी की तरह इस बार भी वही कहानी दोहराई गई। मार्च माह में तब विधानसभा के गैरसैंण में आयोजित सत्र को अचानक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। छह मार्च को तत्कालीन सीएम सहित समस्त विधायकों को देहरादून तलब किया गया था। भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह देहरादून आए थे। उन्होंने भाजपा कोर कमेटी की बैठक के बाद फीडबैक लिया था। इसके बाद उत्तराखंड में आगामी चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री बदलने का फैसला केंद्रीय नेताओं ने लिया था। नौ मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। वहीं, दस मार्च को भाजपा की विधानमंडल दल की बैठक में तीरथ सिंह रावत को नया नेता चुना गया। दस मार्च की शाम चार बजे उन्होंने एक सादे समारोह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी। ठीक इसी तर्ज में फिर से कहानी दोहराई गई।
राजनीतिक अस्थिरता के लिए है उत्तराखंड की पहचान
उत्तराखंड राज्य की पहचान राजनीतिक अस्थिरता के रूप में भी होने लगी है। यहां चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर भाजपा की। दोनों ही सरकारें नेतृत्व परिवर्तन कर चुकी हैं। इस मामले में भाजपा तो सबसे आगे है। मार्च माह में नेतृत्व परिवर्तन कर त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम के पद से हटना पड़ा। फिर तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। अब उनके समक्ष भी तकनीकी पेच हैं। या तो वे उपचुनाव लड़ेंगे, या फिर से भाजपा को उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ेगा। उत्तराखंड ने 20 साल के इतिहास में 11 मुख्यमंत्री देखे। अकेले नारायण दत्त तिवारी ऐसे CM हैं, जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। तिवारी 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे।
उत्तराखंड में बीस साल में 11 मुख्यमंत्री
उत्तराखंड राज्य बने 20 साल हुए और यहां 11 बार सीएम बनाए गए। इनमें पुष्कर सिंह धामी 11वें मुख्यमंत्री हैं। इनमें कांग्रेस ने अपने दस साल के शासन में तीन मुख्यमंत्री दिए, जबकि भाजपा ने दस साल में आठ सीएम दिए।
नित्यानंद स्वामी
नौ नवंबर 2000 को देश के 27वें राज्य के रूप में पैदाइश हुई थी उत्तराखंड की। तब पहली अंतरिम सरकार बनाने का मौका मिला भाजपा को और पहले मुख्यमंत्री बने नित्यानंद स्वामी। कुछ ही महीनों में भाजपा में स्वामी की मुखालफत शुरू हो गई। अंतत: एक साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अक्टूबर 2001 में स्वामी की विदाई हो गई।
भगत सिंह कोश्यारी
और उनके उत्तराधिकारी बने भगत सिंह कोश्यारी। कोश्यारी को लगभग चार महीने का ही कार्यकाल मिला, क्योंकि वर्ष 2002 की शुरुआत में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता से बेदखल हो गई।
नारायण दत्त तिवारी
कांग्रेस के सत्ता में आने पर नारायण दत्त तिवारी राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री बने। तिवारी अब तक अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
भुवन चंद्र खंडूड़ी
वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में फिर भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। भाजपा ने तत्कालीन सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया मगर सवा दो साल बाद जून 2009 में खंडूड़ी को हटा दिया गया।
रमेश पोखरियाल निशंक फिर खंडूड़ी
इसके बाद मुख्यमंत्री के रूप में रमेश पोखरियाल निशंक की ताजपोशी कर दी गई। निशंक को भी लगभग सवा दो साल ही इस पद पर रहने का मौका मिला और सितंबर 2011 में फिर खंडूड़ी को दोबारा भाजपा ने सरकार की कमान सौंप दी।
विजय बहुगुणा
वर्ष 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। कांग्रेस ने भी विधायक के बजाय एक सांसद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया। बहुगुणा मार्च 2012 से जनवरी 2014 तक कुर्सी पर रहे। कांग्रेस में अंदरूनी कलह के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
हरीश रावत
हरीश रावत फरवरी 2014 में मुख्यमंत्री बन गए। वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता से विदाई हुई और फिर अवसर मिला भाजपा को।
त्रिवेंद्र सिंह रावत
इस बार भाजपा ने विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत को मार्च 2017 में मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी। चार साल का कार्यकाल पूरा करने से कुछ ही दिन पहले नौ मार्च 2021 को त्रिवेंद्र को अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ा।
तीरथ सिंह रावत
10 मार्च को तीरथ सिंह रावत राज्य के 10वें मुख्यमंत्री बने और महज 114 दिन में उनकी विदाई की पटकथा लिख दी गई।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “उत्तराखंड में सबसे कम उम्र के सीएम होंगे पुष्कर धामी, कल लेंगे शपथ, जानिए उनका राजनीतिक व सामाजिक संघर्ष

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *