श्रीदेव सुमन को समर्पित युवा कवि नवीन जोशी की कविता-एक श्रद्धांजलि
एक श्रद्धांजलि
भागीरथी के बहाव को,
तू सून रहा सुरक सुरक।
जानबूझकर मौन होकर,
तू देख रहा सुरक सुरक।
जन्मभूमि भी पहाड़ बनकर
रो रहीं थीं सिसक सिसक।
फिर भी उसें दया न आई
देख रहें थे सुरक सुरक।
माधौं कुफु तीलु की वीर भूमि
तुम भी देख रहें थे सुरक सुरक
फिर भी उनको दया न आयी
मौन होकर देख रहें सुरक सुरक
ब्रह्म विधाता कि न्याय भुमि में
यें केसा अन्याय हुआ सुरक सुरक
विधाता भी चुपचाप रहकर भी
तमासा उनका देख रहा था सुरुक सुरक
श्री देव सुमन तेरा हिमालय,
देख रहा था सुरक सुरक
विरहृ व्यथा में मौंन होकर,
रों रहा था वह सुरक सुरक।
फलों के पेडों कि एक चाह
सावन के उगें फल फूल भी
देख रहें थे सुरक सुरक
भुख प्यास तेरी मिटाने हेतु
चाह रहें थें सुरक सुरक
अन्न भुषा पिसा कांच मोन होकर
प्यार से परोस रहें थे सुरुक सुरक
बैसर्मि कि वैं हदैं पार कर
कर रहें थे खुसुर फुसुर
युगों-युगों सें आज तक देव सुमन
जन जन रों रों रहा सिसक सिसक
युगों-युगों तक अमर देव सूमन
सब जन जन बोंल रहा नमन नमन
25 जुलाई कि वह सावन तिथी
बीत रही थी सुरुक सुरक
सावन की वह चमकती चांदनी रात्रि
रों रही थीं सुरुक सुरक
कवि का परिचय
नाम-नवीन जोशी
कवि टिहरी गढ़वाल के पिलखी के पोस्टऑफिस में उपडाकपाल के पद पर कार्यरत हैं। वह टिहरी गढ़वाल के थौलधार विकासखंड के कोट गांव के निवासी हैं। कविता लिखना उनका शौक है।