युवा कवयित्री गीता मैंदुली की कविता- बेमौसम बारिश और गरीब किसान
बेमौसम बारिश और गरीब किसान
बेचैन वो नहीं उस शख्स की जिम्मेदारी है
कभी बारिश के लिए तड़पता रहा तो
आज वही बारिश उसकी फसल पे भारी है
कल रात जला नहीं चूल्हा उसका
क्योंकि राशन के सारे बर्तन खाली हैं।
सारा कुटुंब आस लगाए हैं नई फसल पर
फसल खेतों से रूठकर नदियों में तैरने लगी
इस बेमौसम बारिश ने बेचैन किया है इतना
वो शख्स फांसी लगाकर भी मरा नहीं ।
बूढ़ी मां कहे बेटा एक किसान है मेरा
भुखमरी का तो कोई सवाल ही नहीं
बीबी यह हाल देख कुछ कह न सकी
बच्चे जोर जोर से चिल्लाने लगे
मां-बाबा खाना अब तक बना क्यों नहीं. ?
कुछ एहसास हुआ उसे अपने इन हालातों का
मगर जाहिर कर ना सका वो अपने जज्बातों को
हाल ये देख निकल पड़ा एक इमारत बनाने को
वहां भी सिर्फ एक सफेद कपड़ा ही था मय्यत ढ़काने को ।
समझने पर बोला मेरा वो कच्चा मकान ही ठीक है
क्यों भटकूं मैं इन महलों की जिंदगी आजमाने में
फख्र है मुझे मेरी इस मिट्टी पर और मैं एक किसान हूं
फसल भले आज बिखरी है पर मैं कल की पूरी आस में हूं ।।
कवयित्री का परिचय
नाम – गीता मैन्दुली
माता का नाम श्रीमती यशोदा देवी
पिता का नाम श्री दिनेश चंद्र मैन्दुली
अध्ययनरत – विश्वविद्यालय गोपेश्वर चमोली
निवासी – विकासखंड घाट, जिला चमोली, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
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