शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता- मैं कवि नहीं
मैं कवि नहीं
मैं कवि नहीं फिर भी,
कुछ मन की बातें लिख लेता हूं।
कभी कभी कोरे पन्नों पर,
शब्द कुछ पिरोया मैं करता हूं।।
शब्द जो छू लेते मेरे मन को,
उनको ही तो मैं लिख लेता हूं।
दिल को भी छू लें ये शब्द आपके,
बस एक छोटी कोशिश मैं करता हूं।।
आहट हवा के झोंको की मैं,
हर पल मैं सुनता रहता हूं।
कई शब्द छुपे हैं उस आहट में,
कोशिश पिरोने की मैं करता हूं।।
कोई तारीफ करे या ना करे,
बस मैं तो लिखता रहता हूं।
सुकून मिलता मेरे मन को,
तभी तो शब्द पिरोया मैं करता हूं।
दूरियां बनी जो आज अपनों से,
कोशिश जोड़ने की उन्हे मैं करता हूं।
वक्त अनसुलझा बनकर बैठा यहां
कोशिश सुलझाने की मैं करता हूं।
प्रातः उठते ही स्वर परिंदों के,
सुनकर मन को प्रफुल्लित करता हूं।
किरण ज्यों ही पड़े तन पर सूर्य की,
तपन मैं उसकी सहता रहता हूं।।
पर सोचता हूं कभी कभी मैं,
किसके लिए मैं लिखता हूं।
भला क्यों पढ़ेगा कोई मेरे लिखे शब्द,
इंसान को हर पल खोया देखता हूं।।
मैं कवि नहीं हूं फिर भी,
कुछ लिखने की कोशिश करता हूं।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
मन की सुंदर अभिब्यक्ति