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December 23, 2024

युवा कवि नेमीचंद मावरी की कविता-हक जाते देखकर भी चुप्पी किस काम की

युवा कवि नेमीचंद मावरी की कविता-हक जाते देखकर भी चुप्पी किस काम की।

हक जाते देखकर भी चुप्पी किस काम की

लगता है ताजे शोणित पर फिर से काई छाई है,
लगता है फिर से रगों में जैसे बर्फ समाई है।
लगता है मृग मरीचिका से ही सारे सपने वादे हैं
लगता है फिर से अपनों ने ही अपने फिर से बाँटे हैं।।

हमको रोटी भी ग़र खुशी से खाने दे
तो बिरियानी से कोई परहेज नहीं,
वक़्त मिल जाये आराम का खटिया पर भी
तो चाहत में कोई सेज नहीं।

ना किसी को द्रोही कहा,
ना हमने किसी का हक मारा है,
लेकिन अपने हक को ऐसे जाने दें
ये हमको भी नहीं गवारा है।
साक्षी रही है भारत भू की मिट्टी
संग-संग रमजान दीवाली की,
साक्षी रही है भारत भू स्वयं
सिवईयों के संग होली की।।

जब तक तानाशाही नहीं चलाई,
हमने फिरंगियों को भी अपनाया है।
चाहे वतन लूट कर चले गए,
फिर भी उनसे संबंध नहीं गंवाया है।।

हिन्दुस्तान की हर चौखट पर हमने
अपने घरों से दीये भी भेजे हैं,
भावों में हिन्दुस्तान नहीं था
फिर भी कितने ही अफगानी सहेजे हैं।
मौल-तौल कर प्रेम में पड़ना तो
हमारी पुश्तों तक ने नहीं सिखाया
फिर कैसे कर देंगे हम भारतवासी को
अपने दिल से पराया।

लेकिन आने वाली पुश्तों को हम
किस मुँह से अपनी संस्कृति बताएंगे
जब राम लला की ही भूमि पर
राम अपने अधिकार गंवाएँगे।
भोली भाली जनता की श्रद्धा के
जब-जब सौदे होते जाएंगें
तब- तब सत्ताधारी लोगों की राहों में
हम भी काँटे ही बोते जाएंगें।।

यहाँ कोई शकुनी नहीं ना कोई
रावण का वंशज आएगा,
लेकिन अधिकारों से खेलने वाला
उनसे कम भी ना माना जाएगा,
छोटे- छोटे हक मिटने पर ही तो
महासमर की आहट सुनाई देती है,
पलक- पांवड़े बिछाने वालों की
आँखों में भी फिर ज्वाला दिखाई देती है

वक़्त रहते सुन लो सत्ताधीशों
वर्ना रणभेरी बज जाएगी,
कालचक्र की चाकी में
संस्कृति अब ना पिस पाएगी,
छल-बल के दम पर अब
कोई हक नहीं ठगने देंगे
अधिकार गंवाकर घाव बने जो
उनको नासूर नहीं बनने देंगे।

कवि का परिचय
नेमीचंद मावरी “निमय”
हिंदी साहित्य समिति सदस्य,
बूंदी, राजस्थान
नेमीचंद मावरी “निमय” युवा कवि, लेखक व रसायनज्ञ हैं। उन्होंने “काव्य के फूल-2013”, “अनुरागिनी-एक प्रेमकाव्य-2020” को लेखनबद्ध किया है। स्वप्नमंजरी- 2020 साझा काव्य संग्रह का कुशल संपादन भी किया है। लेखक ने बूंदी व जयपुर में रहकर निरंतर साहित्य में योगदान दिया है। पत्रिका स्तंभ, लेख, हाइकु, ग़ज़ल, मुक्त छंद, छंद बद्ध, मुक्तक, शायरी , उपन्यास व कहानी विधा में अपनी लेखनी का परिचय दिया है।
लेखक की कलम से
रचना का उद्देश्य किसी भी आम हिन्दुस्तानी को आहत करना नहीं है, बल्कि हर भारतवासी को अपने हक के लिए आगे आकर बोलने के पक्ष में है। सरकारी छुट्टियों में भारत की सभ्यता और संस्कृति को बचायी जाने वाली छुट्टियों तक का शामिल ना होना हर भारतीय के लिए शर्म की बात है। क्योंकि आज अगर हम किसी त्योहार को मनाने के लिए घर पर ही नहीं होंगे तो धीरे धीरे सारे परंपरागत रीति रिवाज ही खत्म हो जाएंगे। इनकी वजह से ही पूरे विश्व में सनातन धर्म और भारतीयता की पहचान है।
जो हम करेंगे वो अगली पीढ़ी देखेगी, हमारी संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरण सम्भव होगा लेकिन अगर हम खुद ही किसी त्यौहार को अहमियत नहीं देंगे तो धीरे धीरे आने वाली पीढ़ी सब त्योहारों को भुला ही देगी। हमें हक किसी भी धर्म को आहत करने के लिए नहीं माँगना है, बल्कि सभी को सबका हक मिले, परिवार के साथ, समाज के साथ रहने का वक्त मिले ताकि प्रेम के अंकुर सदा प्रस्फुटित होते रहें। अगर वक़्त नहीं दिया अपनी संस्कृति को बचाने का, अपनों में घुलने मिलने का मतभेद होते ही जाएंगें। गंगा जमुना तहजीब का फिर खून होने कोई रोक नहीं सकता।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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