साहित्यकार एवं कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता- देख रही है प्रिय धरा निरंतर
देख रही है प्रिय धरा निरंतर !
फाख्ता गौरैया ग्लैडोलिया,
गेंदा गुड़हल गुलदाऊदी।
हरित क्षेत्र सम्मुख सुरपर्वत,
पुष्प पर्ण सुरभित मही।
मेरे घर आंगन में हर दम,
खगकुल स्वच्छ समीर बही,
सूर्य रश्मियां तिरछी किरणें,
धरती दूषित है नहीं कहीं।
सघन वन बांज व काफल,
श्री देव सुमन विद्यालय।
प्रतिपल प्रतिध्वनि खाल से,
गुंजारित है यह आलय।
सूरज सम्मुख, हेंवल घाटी,
जड़धार हरित – हिमालय।
सर- सर बहती मंद पवन,
लगती ज्यों यह मलयालय।
दिन में सूरज -रात चंद्रमा,
विघुत बाती -पथ प्रकाश।
देख रही है प्रियधरा निरंतर,
जीवन की लय, सतत प्रवाह।
कवि का परिचय
कवि एवं साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी, निशांत सेवानिवृत शिक्षक हैं। वह नगर पालिका परिषद चंबा के स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर हैं। वर्तमान में वह सुमन कॉलोनी चंबा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में रहते हैं। वह वर्तमान के ज्वलंत विषयों पर कविता, लेख आदि के जरिये लोगों को जागरूक करते रहते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना????