कवि ललित मोहन गहतोड़ी की कुमाऊंनी कविता-सुन चेतुआ
सुन चेतुआ
ओ चेतुआ… सुन चेतुआ,
सुन सुनैतू गुन चेतुआ…
सुन चेतुआ सुनिले बाबू,
मुख मुखैको ज्ञान चेतुआ…
देख चेतुआ गठि बादिले,
दिन गिनैकि ज्वानि चेतुआ…
नान ठूलाको मान राखिये,
छाडि दिए अभिमान चेतुआ…
लेखिपढि अभिमान नै कर,
पढि लेखैकी शान चेतुआ…
कस बखतै आगौ बाबू,
कस हैगो अज्ञान चेतुआ…
पूर्वजोंकि छाड़ि विरासत,
भाड़ खेड़ि रै शान चेतुआ…
बल…
ओ चेतुआ मनैमन, कस हैग्यां बेहाल बल…
रात दिनछै फेसबुकिया , धत तेरा मिजातै बल…
पुछ-पुछनि फोन हेरछै, जानि-देख्या सवालै बल…
हम लगै अस्यान चेतु, तेरी जसि अन्वारै बल…
ओ चेतुआ सुनिले बाबू, घाम-पकाया बालै बल…
तेर दगडा संग साथी, भाबर क्वै मालै बल…
मति मानलै फैद रौले, लेखि-पढ़िया फिलहालै बल…
सुन चेतुआ गांठ बादि ले, मेरा कयै यो बात बल…
कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।