लोहड़ी पर्व पर कवि एवं साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी की कविता-यह सतरंगी संस्कृति भारत की

पर्व लोहड़ी या हो मकर संक्रांति।
आती पर्वों पर नित याद पुरानी,
भारत माता की संस्कृति क्रांति।
आज लोहडी़ -कल मकर संक्रांति,
परसों भी होगा कोई संस्कृति पर्व।
स्वर्णिम अतीत -सदा मनाते आयें,
उर उल्लास हम भारत के जन सर्व।
आज लोहड़ी कल मकर सक्रांति,
आ जाएगा भारत गणतंत्र का पर्व।
बसंत पंचमी और बैसाखी अवसर,
पर होगा भारत के जन जन को हर्ष।
भारत की कथा विविध विचित्र है,
विविध धर्म जाति क्षेत्र समूह अनेक।
सब भारत माता की महान संतानें,
सब पर्व त्यौहार मनाते आयें हो एक।
चलो मनायें सब आज पर्व लोहड़ी,
कल मकर संक्रांति का पर्व नहायेंगे।
कोरोना का भी ध्यान रखना भाईयों,
घर में रह कर ही पर्व त्यौहार मनाएंगे।
कवि का परिचय
कवि एवं साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी, निशांत सेवानिवृत शिक्षक हैं। वह नगर पालिका परिषद चंबा के स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर हैं। वर्तमान में वह सुमन कॉलोनी चंबा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में रहते हैं। वह वर्तमान के ज्वलंत विषयों पर कविता, लेख आदि के जरिये लोगों को जागरूक करते रहते हैं।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।