Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

March 11, 2025

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-वो दिन

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-वो दिन।

वो दिन

वो भूखा- नांगा दिन, अज्यूंबि याद छन.
वो रूखा टिक्कड़ बि, हमकु खैराद छन..

भलु स्वाद छौ, जौ- क्वादा लोठ रोट्यूंम,
आजा चटपटू खांणु खै, पेट बरबाद छन..

ग्यूं कि रोट्यूं लुछणु, भात देखि टरपरांणू,
चुल्ला काख बैठीं, अज्यूं याद वो रात छन..

जौं- कूणि- पुगण्यूं , अगोड़ि बचपन बितै,
आज वो कूणि-पुंगणि, कख आवाद छन..

घास- लखणु गोर- बछुरौं, से बंध्यूं जीवन,
पैलि जनु उठणु-बैठणु, कख धै-धाद छन..

डरोण्यां सी बणि रैगीं, जण चारेक मन्खी,
समऴौण रखीं चिठि-पतिरि, हि साथ छन..

‘दीन’ हमरा रैंद- छैंद, बदिलिगे सबकुछ,
धिक्कार हमकु, हमबि कन औलाद छन..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Website |  + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-वो दिन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page