डॉ. सुशील उपाध्याय की कविताएं-देह पर दर्ज निशान, ये मेरे पिता के लिए डरावने नहीं थे
देह पर दर्ज निशान!
मैं, शरीर पर नीले निशान
लेकर पैदा हुआ था।
इन निशानों के बारे में
सबके अपने अनुमान थे।
शकुन, अपशकुन भी थे।
लेकिन, मेरे पिता को सच का पता था।
ऐसे ही निशान उनकी देह पर भी थे।
मजदूरों के शरीर पर अक्सर ही होते हैं,
इनमें से कुछ को वक्त दर्ज करता है और कुछ को व्यवस्था।
ये पीढ़ी दर पीढ़ी दर्ज होते जाते हैं
पहले शरीर पर,
और फिर आत्मा पर अमिट छप जाते हैं,
रिसते हुए घाव की तरह।
ये दुखों और दर्द के प्रामाणिक दस्तावेज हैं
इसलिए
मजदूर का हर बच्चा इन्हें साथ लेकर पैदा होता है। (अगले पैरे में देखिए)
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ये मेरे पिता के लिए डरावने नहीं थे
हालांकि,
उन्होंने अपने पिता को दाह देते वक्त सोचा था-
ये सब जाएंगे जल जाएंगे
मृत शरीर के साथ,
हमेशा-हमेशा के लिए।
लेकिन, मेरे साथ फिर वापस आए
सदियों की संचित पीड़ा की स्मृति की तरह।
इन्हें छूता हूं तो पीढ़ियों का दर्द
मेरी देह में दौड़ जाता है।
पिता मेरे बदन को उघाड़कर देखते हैं
निराश होते हैं-
निशान और बड़े, ज्यादा गहरे हो रहे हैं।
जैसे,
अगली पीढ़ी तक पहुंचने को छटपटा रहे हैं।
कवि का परिचय
डॉ. सुशील उपाध्याय
प्रोफेसर एवं पत्रकार
हरिद्वार, उत्तराखंड।
9997998050

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।