युवा कवि सुरेन्द्र प्रजापति की कविता- कल्पने धीरे-धीरे बोल
![](https://loksaakshya.com/wp-content/uploads/2021/06/सुरेंद्र-प्रजापति-1.png)
कल्पने, धीरे-धीरे बोल
बोल रही जो स्वप्न उबलकर
विह्वल दर्दीले स्वर में,
कुछ वैसी ही आग सोई है
मेरे, लघु अंतर में।
इस पुण्य धरा पर देखो,
खड़ा मृत्यु मुख खोल
कल्पने धीरे-धीरे बोल
फल्गु का जल सुख गया,
धारा में पड़ी दरारें,
मन्दिर के देवता ऊंघ रहे हैं
मन्त्र करती चित्कारें।
शिखा सुलग रही है मन मे
जीवन रहा है डोल,
कल्पने! धीरे-धीरे बोल।
श्री विष्णु का चरणचिह्न
अमृत से भय खाता,
अंधेरों का दीप जलाकर
वेदना का गीत गाता।
सुधामयी पवन में संक्रमण
विष रहा है घोल,
कल्पने! धीरे-धीरे बोल।
आज प्रभात की किरनें भयभीत
सुलग रहे हैं तारे,
फूलों से खुश्बू निर्वासित
झड़ते तप्त अँगारे।
मन की दीप्ति संभाल,
अब जीवन का बोलो मोल
कल्पने! धीरे-धीरे बोल।
जल रही है रजनी दाह से
सुलग उठी चिंगारी,
जल रही चिताएं तट पर
जलता केशर क्यारी।
वीणा की लय में, काँप रहा
है, सारा विश्व भूगोल
कल्पने! धीरे-धीरे बोल।
भाग्य विचित्र खेल खेलता
छूट गए हैं अपने,
साध-साधना दहक रही है
टूट गए हैं सपने।
किसी दुष्ट दानव की ईर्ष्या
विष, रहा है खौल
कल्पने! धीरे-धीरे बोल।
दया शांति का संदेश,
तेरा वसन जला जाता है,
मानव, मानव के स्वर में
प्रलय घिर-घिर आता है।
आंसुओं के आवेग से जग का
हृदय रहा है डोल
कल्पने! धीरे-धीरे बोल।
लाखों मानव के आंखों से
झरने रोज बहेगें,
अंतर की पगडंडियां टूटी
शिखा की व्याल दहेंगे।
जीवन की घावों को कुरेदना
लगा पाप का बोल,
कल्पने! धीरे-धीरे बोल।
एक युक्ति है सुनो मित्रवर!
दर्द में तुम हंस लो,
मन की पीड़ा, विश्वास से जीतो
विपत्तियों में बस लो।
शृंगार करेगी व्यथा, कथा में
होंगे मीठे बोल,
कल्पने! धीरे-धीरे बोल।
कवि का परिचय
नाम-सुरेन्द्र प्रजापति
पता -गाँव असनी, पोस्ट-बलिया, थाना-गुरारू
तहसील टेकारी, जिला गया, बिहार।
मोबाइल न. 6261821603, 9006248245
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना?