युवा कवि सुरेन्द्र प्रजापति की कविता-नए कलेवर में

वह प्रत्येक अंधकार से लड़ा है
और वर्षों से निर्विकार खड़ा है
उमस, तपन, धुप, बरखा, सर्द ठंढक
हर चुनौतियों को स्वीकारता
उम्मीदों की चक्रवात को ललकारता
तपती बंजर पर पड़ा है
संवेदना की भाषा में वही बड़ा है।
सब कुछ बर्बाद हो जाने के बाद
या उसके श्रम को लूट जाने पर भी
उसके खाली मैले बटुए में
हटाश जिज्ञासा में भी आशा है
उसका अपना मैलिक भाषा है
जिसे बोया है उसके पुरुखों ने
अपने पसीने को भींगोकर रखा है।
पोसा है उसके देह को
कोसा है डरे-डरे संदेह को
बोया है एक स्त्री विदेह को
उसके पास खोने को है क्या
सिर्फ एक परिस्कृत भाषा।
पूर्वजों के आसीस से
बदलती है अपना रूप
बिल्कुल जादू की तरह
कुदाल, फार, खुरपी, गैंता, टाँगी, गड़ासा
खेत, खलिहान, झाड़ी, जंगल
या पत्थर, पर्वत में
प्रकृति के नये कलेवर में।
कवि का परिचय
नाम-सुरेन्द्र प्रजापति
पता -गाँव असनी, पोस्ट-बलिया, थाना-गुरारू
तहसील टेकारी, जिला गया, बिहार।
मोबाइल न. 6261821603, 9006248245

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।