युवा कवि सुरेंद्र प्रजापति की कविता- साहित्य और सत्ता

साहित्य और सत्ता
साहित्य का
सत्य और निश्छल शब्द
सता के गलियारे में,
जब दस्तक देता है, न…
सिंहासन के विरुद्ध
विद्रोह को झेलता है,
और
न्याय की चेतना
षडयन्त्रों से खेलता है
सच है, कि साहित्य
सत्ता का गौरव है
संस्कृति का वैभव है
समृद्धि का उत्सव है
लेकिन यह अनुगामी नहीं होता
सत्ता का, सिंहासन का
मिथ्या प्रवचनों से प्रभा नहीं खोता
इसका स्वर, हुँकार, श्वेत पुकार
उत्तरगामी बन, करता
मानवता का अलंकार
स्मृति, की विराटता
कल्पना, की सूक्ष्मता
संरचना, की अद्भुत क्षमता
साहस, प्रश्न वाचन
अन्तःकरण की
सृजनात्मक सुंदरता
यही है साहित्य की निर्भीकता
कवि का परिचय
नाम-सुरेन्द्र प्रजापति
पता -गाँव असनी, पोस्ट-बलिया, थाना-गुरारू
तहसील टेकारी,जिला गया, बिहार।
मोबाइल न० 6261821603, 9006248245
शिक्षा – मैट्रिक
मैं, सुरेन्द्र प्रजापति बचपन से साहित्यिक पुस्तक पढ़ने का शौकीन हूँ। पाँचवी पास कर मैं पढ़ाई को छोड़ चुका था, लेकिन अपने स्वभाव के अनुसार, कहानी, लेख उपन्यास के पठन पाठन में मेरी रुचि जोर पकड़ती रही। लेखन कब शुरू कर दिया पता नही चला। फिर तो लगातार लिखना शुरू कर दिया। मेरे लिखे कविता, लेख, कहानी को मेरे दोस्त पढ़ते और उत्साहित करते। कई वर्षों बाद मैं मैट्रिक किया। लिखने का सिलसिला लगातार चलता रहा। अभी तक किसी भी साहित्यिक उपलब्धि से वंचित। कुछ पत्र-पत्रिकाओं एवं बेव पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।
एक कहानियों का संग्रह सूरज क्षितिज में प्रकाशित।
सम्प्रति:- एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ मिशन में स्वास्थ्य सलाहकार।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।