युवा कवि सुरेन्द्र प्रजापति की कविता- श्रृंगार की बेड़ियाँ
श्रृंगार की बेड़ियाँ
आभूषण, बनाव, श्रृंगार,
सौंदर्य की बेड़ियों में जकड़ी
करती मिथ्या परम्परा में विहार
स्त्री!
क्या तुम्हें दुःख नही होता
कि दासता के तिलिस्म में
चक्कर खाती,
संस्कार के नाम पर
नित्य छली जाती, जलती,
स्वयं के अस्तित्व को जलाती,
आखिर जीवन में तुम क्या पाती?
अपने कनक आभूषण से
इतना मोह क्यों है तुम्हे?
कि अपनी चपलता, उन्मुक्तता को
अपने ही वजूद पर
बरसा रही हो जंजीर की तरह, और,
पीड़ा में गौरव गीत गा रही हो
स्त्री! त्याग सकती हो!
अपनी पीड़ा, अपनी निर्बलता
अपने सतीत्व के लिए
अपनी बनाव की भीरुता
छोड़ो, परम्परा की बेड़ियाँ तोड़ो
त्यागो, ये बोझ जरा गति को मोड़ो
स्वर्णमय आजादी को चूमो
गुलाम जिंदगी से निकलकर
विस्तृत धरा पर, निर्भय घूमो
कवि का परिचय
नाम-सुरेन्द्र प्रजापति
पता -गाँव असनी, पोस्ट-बलिया, थाना-गुरारू
तहसील टेकारी,जिला गया, बिहार।
मोबाइल न० 6261821603, 9006248245
शिक्षा – मैट्रिक
मैं, सुरेन्द्र प्रजापति बचपन से साहित्यिक पुस्तक पढ़ने का शौकीन हूँ। पाँचवी पास कर मैं पढ़ाई को छोड़ चुका था, लेकिन अपने स्वभाव के अनुसार, कहानी, लेख उपन्यास के पठन पाठन में मेरी रुचि जोर पकड़ती रही। लेखन कब शुरू कर दिया पता नही चला। फिर तो लगातार लिखना शुरू कर दिया। मेरे लिखे कविता, लेख, कहानी को मेरे दोस्त पढ़ते और उत्साहित करते। कई वर्षों बाद मैं मैट्रिक किया। लिखने का सिलसिला लगातार चलता रहा। अभी तक किसी भी साहित्यिक उपलब्धि से वंचित। कुछ पत्र-पत्रिकाओं एवं बेव पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।
एक कहानियों का संग्रह सूरज क्षितिज में प्रकाशित।
सम्प्रति:- एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ मिशन में स्वास्थ्य सलाहकार।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।