युवा कवि एवं शिक्षक गीता राम मीना की कविता- अपना आईना

अपना आईना
जिंदगी से लम्हा चुरा
बटुए में रखता रहा !
फुर्सत से खरचूंगा
बस यही सोचता रहा।
उधड़ती रही जेब
करता रहा तुरपाई
फिसलती रही खुशियां
करता रहा भरपाई।
एक दिन फुर्सत पाई
सोचा………
खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े
वह लम्हे खर्च आऊं।
खोला बटुआ…. लम्हे न थे
जाने कहां बीत गए!
मैंने तो खर्च नहीं किए
जाने कैसे बीत गए ! !
फुर्सत मिली थी सोचा
खुद से मिल आऊं।
आईने में देखा जो
पहचान ही ना पाऊं
ध्यान से देखा बालों पर
चांदी सा कवर चढ़ा था
था तो मुझ जैसा पर
जाने कौन खड़ा था…….!
कवि का परिचय
नाम-गीता राम मीना
प्राध्यापक ( हिन्दी) स्वामी विवेकानन्द राजकीय मॉडल स्कूल लाखेरी के.पाटन जिला बूंदी, राजस्थान।
दूरभाष – 9462701943
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।