युवा कवयित्री एवं छात्रा गीता मैंदुली की दो कविता-किसान और बुढ़ापा
किसान
तुमसे ही कुछ पैसे उधार लेकर
वो तुम्हारे लिए ही अनाज उगाएगा
खुद को वो तुम्हारा कर्जदार और
तुमको साहूकार बताएगा ।।
सुबह से ना जाने कब शाम हो गई
ये तो उसे डूबता सूरज ही बताएगा
सूरज भी इस पार से उस पार चला जाएगा
पर वो अपना सारा दिन इसी मिट्टी में बिताएगा।।
थके हारे घर पहुंचकर वो खुद भूखा भी सो जाएगा
पर सवेरे जागते ही वो अपने काम पर चला जाएगा
इस कदर सबको भुखमरी के शिकार से बचाएगा
न जाने वो खुद कब पेट भर खाना खाएगा ।।
लड़खड़ाते हुए को सहारा दो
तभी तो वो संभल पाएगा
और तुमको क्या लगता है एक दिन
भारत बंद कर देने से
किसानों का कर्ज माफ हो जाएगा ।।
बुढ़ापा
उम्र सबकी बढ़ती ढलती है
ना कर गुमान तू अपनी इस जवानी पर,
भूख से बिल~बिलाते बुजुर्गों को लांघकर
ना कर तू दिखावा मंदिर में इस भगवान पर,
यूं भला-बुरा सुना कर उन्हें तू
बदनाम यूं सरेआम ना कर,
उन्होंने ही तुझे पाल पोस कर बड़ा किया है
इसका तो तू थोड़ा लिहाज कर,
ग़र नहीं करना पछतावा तुझे बाद में
तो जीते-जी ही तू उनका सम्मान कर!
कवयित्री का परिचय
नाम – गीता मैन्दुली
माता का नाम श्रीमती यशोदा देवी
पिता का नाम श्री दिनेश चंद्र मैन्दुली
अध्ययनरत – विश्वविद्यालय गोपेश्वर चमोली
निवासी – विकासखंड घाट, जिला चमोली, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।