Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

October 28, 2025

कविता में पढ़िए महानायक भीमराव अंबेडकर की जीवनी, प्रस्तुतकर्ता-श्याम लाल भारती

कविता में पढ़िए महानायक भीमराव अंबेडकर की जीवनी, प्रस्तुतकर्ता-श्याम लाल भारती

महानायक भीमराव अंबेडकर

चलो आज सुनाएं बात जुबानी,
महू मध्यप्रदेश की ये,है कहानी।
पैदा होगा ऐसा लाल धरा में,
गजब होगी जिसकी कहानी।।

पिता राम जी मा लो थे जिनके,
मां भिमाबई की गोद थी पाई।
जन्म 14अप्रैल 1891में हुआ,
संविधान पिता की ये,है कहानी।।

पिता थे उनके बड़े स्वाभिमानी,
रूढ़ि वादी समाज से हार न मानी।
बेच डाला सब सामान घर का,
बेटे की शिक्षा थी,पूरी करानी।।

सुनो एक दिन की बात पुरानी,
पीने को न मिला था उनको पानी।
पानी पीने की खातिर उनको,
रूढ़िवादियों की शर्त थी माननी।।

प्यास बुझाने की खातिर उनको,
डेढ़ दिन तक बैलगाड़ी थी हांकनी
कैसी रूढ़िवादिता थी उस दौर में,
किसी को न थी उन पर दया आनी।।

कैसा समाज रहा होगा उस वक्त,
जिसने ये बात बिल्कुल न जानी।
खून एक, धर्म एक ही था उनका,
नहीं दिया उनको पीने को पानी।।

समाज में ऊंच नीच भेद सहकर,
पथ पर बढ़ता गया स्वाभिमानी।
पर उफ्फ तक नहीं किया हृदय ने,
अपनों को थी पहचान दिलानी।।

कूद पड़ा शिक्षा की रणभूमि में,
अशिक्षित को थी शिक्षा दिलानी।
26 डिग्रियां कर ली अपने नाम,
16 भाषाओं के थे वे महाज्ञानी।।

जब 565 रियासतें थी भारत में,
लिख डाली संविधान की कहानी।
2 वर्ष 11 माह 18 दिन में,
दे दी सबको संविधान की निशानी

राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान,
युगों तक याद रहेगा सबकी जुबानी।
भारत के प्रथम कानून मंत्री बनकर,
अपृष्यता बुराई थी उनको मिटानी

कुरीतियों का विरोध करके,
छुआछूत थी समाज से मिटानी।
देश हित के लिए हर वक्त कुर्बान,
भारतरत्न मिलने की यही कहानी

अपनी कौम देश हित के कारण,
लड़ता रहा वो बीर स्वाभिमानी।
खुद के लिए जीना क्या जीना,
देश पर कुर्बान कर दी अपनी जवानी।।

वो थे इंसानियत के गजब मसीहा,
इंसानियत थी उनकी कहानी।
इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं,
इंसान में थी इंसानियत जागानी।

आजादी पाना आजादी से जीना,
दोनों बातों की अलग कहानी।
सभी को एक सूत्र में बांध चले,
लोगों में समरसता की धार बहानी

जरा आज कुछ याद करो कुर्बानी,
बाबा साहेब की ये अमर कहानी।
हमारे हित के लिए उस नायक ने,
संविधान में लिखी अमिट कहानी।

चलो करें पुष्प अर्पित आज उन्हें,
भेदभाव की मिटाई थी कहानी
नमन करते हम हृदय से उनको,
कुरीतियों के आगे हार न मानी।

पर कौन जीता युगों युगों तक यहां
1956 को थी मौत जो आनी।
धरती मां के आगोश में सो गया,
सबकी आंखों में वो भर गया पानी

इस संसार में सदा अमर हो तुम,
यही इस महात्मा की है कहानी।
मरकर भी आज सबके हृदय में,
बाबा साहेब तुम्हारी अमर कहानी

अमर हो जाते वे ही लोग यहां,
जिंदगी की दी जिसने कुर्बानी।
पर याद करेगा वतन सदा उन्हे,
लिखी थी जिसने संविधान की कहानी।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *