कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता-यदि स्वर्ग का सुख पाना है, तो राजनीति में आना
यदि स्वर्ग का सुख पाना है, तो राजनीति में आना।
सुख -सत्ता सिंहासन को, हरगिज नहीं खोने देना।
राजनीति से दौलत के बल, बंगला- जमीन खरीदें,
अकूत धन दौलत प्राप्त कर, निर्धन नाटक कीजें ।
यदि स्वर्ग का सुख भोगना है ——
नाम कितना सुंदर प्यारा, जन सेवक- जनप्रतिनिधि,
जनता जनार्दन, जन -नायक, जनतंत्र में मिले निधि।
सांसद विधायक बात छोड़ो, सब नेता गण हैं नायक,
हो जाए निर्वाचित जो जन, आज वही सबसे लायक।
यदि स्वर्ग का सुख पाना है ———-
जनरल कर्नल सूबेदार सिफाई, बनते जा रहे जननेता,
पढ़े लिखे अनपढ़ नेतागण, अब बनते मंत्री अभिनेता।
छोड़ प्रशासनिक सेवाएं , सब बनते जा रहे जननेता,
प्रजातंत्र में अपराधी तक, अपने माननीय प्रिय नेता।
यदि स्वर्ग का सुख पाना है ———
बहुत लिखा स्वर्ग सुख के बारे में, स्वर्ग सुख नहीं पाया,
राजनीति में दस्तक दी जब, स्वर्ग दौड़ता घर आया।
जीवन भर जो नहीं कमाया, झटके में सब प्राप्त हुआ,
राजनीति में शिरकत करके,गाली खाकर भी मान बढ़ा।
यदि स्वर्ग का सुख पाना है———-
सीख गया हूं तिकड़म बाजी, सभी वाद भी सीख गया,
साम दाम दण्ड भेद की नीति, राजनीति में विषय मिला।
चार दिन चारण चरण बंदना, पांच वर्ष में दल बदल दिया,
राजनीति सत्ता सुख में, अब ईमान जुबान तक भूल गया।
यदि स्वर्ग का सुख पाना है ——–
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।