कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता- आ जाना मेरे सुर कुट पर

आ जाना मेरे सुर कुट पर
क्या देखा है कभी आपने, मां के मंदिर की यह शोभा !
हरित बर्फीला पर्वत देखा, क्या देखा सोना जड़ा हुआ ?
क्रिसमस की शुभ संध्या में, हमे दीप जलाना नहीं पड़ा,
संध्या स्वर्ण किरणों से रंजित, मां का मंदिर खूब सजा।
मां के मंदिर दर्शन बिन, जीवन का क्या आस्तित्व भला !
चक्षु निरंतर लालायित रहते, सुर कुट दर्शन बिन चैन कहां!
आ जाता हूं बिना बुलाए भी, मां के चरणों में मै यहां सदा।
रम्य रूप लख पावन पर्वत के, हो जाता हूं मै कृतार्थ फिदा।
आ जाना मेरे सुर कुट पर , तुम मां सुरकंडा दर्शन पाने को।
शुभाशीष मां का पाओगे, और नाना रूप प्रकृति निहरोगे।
अदभुत झलकियां- चित्र- बिम्ब तुम, इस पर्वत पर पाओगे
और कवि निशांत की कविताएं भी, मंदिर में सुन जाओगे।
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।