साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी की कविता-हिमालय के आंचल में
हिमालय के आंचल में
मध्य हिमालय के आंचल में, दो सम ऐसे नगर बसे ,
एक हिमाचल एक उत्तरांचल चंबा जिनके नाम पड़े।
मध्य हिमालय के ————
वीर भूमि उत्तरांचल चंबा में, दो पुष्प पारिजात खिले ,
एक गबर सिंह एक सुमन श्री, जिनके नाम अमर हुए ।
मध्य हिमालय के———–
प्रथम परमवीर महा समर सेनानी, विश्वयुद्ध शहीद हुए ,
क्रांति पथ पर कदम बढ़ाते श्रीदेव सुमन बलिदान किए।
मध्य हिमालय के————-
उन वीर बलिदानियों के नाम से शीश हिमालय उठता है,
अभिनंदन कर उन वीरों का, नतमस्तक सिर जन होता है।
मध्य हिमालय के————-
मंजूड जौल में जन्मे नायक, विश्व क्षितिज पर दमक रहे,
पिंड- सूर्य अंबर प्रकाशित ,धरा दीप बन द्वय चमक रहे।
मध्य हिमालय के————
गढ़ वीरों की इस पावन धरती पर , ये वीर धीर उत्पन्न हुये,
शौर्य – उत्सर्ग की अमर कथा, जन मन को है आवर्त किए।
मध्य हिमालय के————-
एक वीर वी सी गबर सिंह था,था बलिदानी श्री देव सुमन ।
इन वीरों की विश्व विजय ने, मोह लिया है जग सबका मन ।
मध्य हिमालय के ————
समय-समय पर तुम्हें सलामी ,श्रद्धांजलि भी हम देते हैं ।
बैसाख आठ, सावन सात को,नमन सब आपका करते हैं ।
मध्य हिमालय के————-
वीर गबर सिंह खड़ा है सीना ताने,चंबा चौक चौराहे पर।
ललकार है परम वीर वह, नित मर मिटने को माटी पर ।
मध्य हिमालय के———–
तड़प रहा है सुमन आज फिर ,जन-जन की आजादी को,
संदेश दे रहामहा बलिदानी वह, एक नई जन- क्रांति को ।
मध्य हिमालय के ———-
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत ।
सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।