Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 22, 2024

युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाती हैं

मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाती हैं,
मैं अगर थोड़ा सा दूर हो जाऊं ख़ुद से,
तन्हाई उसी मोड़ पर रुके रहती है,
फ़िर पास खुद के आऊ तो तन्हाई हाल मेरा मुझसे पूछती है,
भीड़ में खो जाऊ तो गायब हो जाती है,
पड़ जाऊं अकेली तो फिर से साथ आ जाती है,
इतनी वफादारी से साथ निभाती है
साझा कहीं कुछ करूं तो इजाज़त देकर चली जाती है
साझा न कर पाऊं तो घंटों पास बैठकर भी बस सुनते जाती है,
पिरोते हैं हिम्मत की डोर, संभालते हैं,
मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में जब साथ आ जाते हैं, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)

दिन के उजाले के चकाचौंध से जब मन एकांत ढूंढ़ता है
तब रात के पहर तन्हाई सुकून की चादर ओढ़े बस सुनता है,
जब जब भीड़ से असफलताओं का ताना मिलता है
तब अकेले में तन्हाई और एक प्रयास का साहस देता है,
जब कभी राह में भटकाव टकरा जाए,
मन इस भटकाव को समझ ना पाए,
तब मन में वास्तविकता लाकर
ये तन्हाई ही सही राह दिखाती है
जब कभी दिन का उजाला,
रात का अंधेरा डराने लगे
अकेलेपन का एहसास कराने लगे,
तब तन्हाई एक रोज़ फुर्सत से समझाती है
कराती है रूबरू अकेलेपन और एकांत मन से,
ये तन्हाई अंतर बतलाती है काल्पनिक और वास्तविकता का
मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाते हैं, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)

कहीं से बिखरकर, उम्मीदों से टूटकर,
अपने क़िरदार को अपने में ही खोकर
अज़ीज़ का साथ छोड़कर,
ग़म को अपने नाम करकर
छल को पाकर,खुद को खोकर
होठों को सिलकर, ख़ामोशी को सीखकर
सपनों को कुचलकर,
हर दर्द को पाकर, हर ख़ुशी खोकर,
इच्छाओं को त्यागकर,
दिखावटी हंसी सीखकर ,
मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाते हैं।
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चंद
खटीमा, उधमसिंह नगर, उत्तराखंड। पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page