युवा कवि वरुण सिंह गौतम की कविता- यह देह का आमंत्रण
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अर्धरात्रि है, काली स्लेट सी छटाएं
मदमाती हुई नृत्य करती
जैसे कुछ सिसकियां सी आवाज़
कभी तेज… कभी मद्धम…
गुर्राते हुए प्रतीत होती
चंद्रिका अनुपस्थित है
आज शीतल जुन्हाई नहीं भर रही
क्योंकि घटाएं बिछौना लगाएं
जैसे कोई हो
वर्तमान निमंत्रण नहीं बल्कि
है आमंत्रण इतिहास दुहराने को
या फिर नये भविष्य की जयमाला
किसी पतझड़ में सड़क किनारे पड़े
किसी अंधेरी स्याही – सी कोने में
एक मटमैला सूखा हुई पत्ता
जीवत्वहीन, निस्पंदन मृत – सी
एक सिसकियां की ठिगनी चिंगारी
जीवत्व स्पन्दनपूर्ण सूरम्य गीत छंद भर देगी
लहलहाती किसी यौवना में (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
बरगद का पेड़
फिर नये भोर में
रवि किरणों के साथ
चहचहाती खग नीड़ लिए
नये ऊर्जा नयी उमंग नये उत्सव सा त्योहार मनाते हुए
रंग भरते होली का जैसे सप्तरंग श्वेत लिए
एक नये ताज़गी सौंदर्यपूर्ण खुशबूदार
लाल हरा नीला पीला आसमान होके
घटा मेघ मूसलाधार का आमंत्रण देते हुए
शंखनाद का जयध्वनि तान
तानसेन की मृदुल बीन
विद्यापति मीठी मैथिली कवि कोयल की बोल
भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी
वहीं भोर दिशा दीप्त बहती हुई व्याप्ति
प्राण भर रहे हो जैसे
सांस लेने और छोड़ने की नलिकाएँ
प्रमाण है कि वह जीवित है (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
पंचामृत सी बनी यह देह
वही अर्धरात्रि में रोएँ खड़ी हो
एक रहस्यमयी अनुभूतियों का अहसास कराती
जैसे मानो कई सारे आकाशीय पिंड मीटिंग में
नए-नए तत्व निर्माण लिए रचना कर रहे
जैसे आमंत्रण दे रहे हो देह को
दिवंगत हो अंतर्ध्यान लिए पधारने को
मृतशय्या के बिस्तर पर
अपने अतीत भूल कर परमात्मा में विलीन
होने को मदमाती हुई मृदंग करतल ध्वनि
जैसे जयनाद हो रही मानो
कोई चक्र अपने घूर्णन गति को पूर्ण कर
फिर वहीं लय में घूर्णन को खड़ी है।
कवि का परिचय
वरुण सिंह गौतम
निवासी-बेगूसराय, बिहार। वर्तमान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्नातक के लिए द्वितीय वर्ष में अध्यनरत।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।