युवा कवि सूरज रावत की कविता- ये जो मैं तुमको सरल और सहज दिख रहा हूँ

ये जो मैं तुमको सरल और सहज दिख रहा हूँ,
आज के इस महेंगे समाज में बड़ा सस्ता बिक रहा हूँ,
कभी खामोश सन्न सा रह जाता हूँ,
कभी अंदर ही अंदर बहुत चीख रहा हूँ,
आज के इस महंगे समाज में बड़ा सस्ता बिक रहा हूँ,
ना परवाह मुझे अब मेरे व्यक्तित्व की,
ना चाह मुझे अब मेरे अपनत्व की,
मैं तो इस वक्त से बड़ा कुछ सीख रहा हूँ,
आज के इस महेंगे समाज में बड़ा सस्ता बिक रहा हूँ, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
इन चंद लफ्जों से जिंदगी की गाथा लिख रहा हूँ,
अंदर से तूफ़ान है मचा हुआ,
बाहर से शांत दिख रहा हूँ,
ये जो में तुमको सरल और सहज दिख रहा हूँ,
आज के इस महेंगे समाज में बड़ा सस्ता बिक रहा हूँ,
कुछ ख्वाब तो, कुछ अल्फाज लिख रहा हूँ,
कुछ दिली तम्मना तो, कुछ अरमान लिख रहा हूँ,
कभी लगती है जिंदगी बड़ी जटिल, तो
कभी आसान लिख रहा हूँ,
ये जो मैं तुमको सरल और सहज दिख रहा हूँ,
आज के इस महेंगे समाज में बड़ा सस्ता बिक रहा हूँ, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
लब हैं सिले हुए फिर भी खामोश निगाहों से ख्वाब सींच रहा हूँ,
कभी लगता है जिंदगी रुक सी गयी ,
और कभी लगता है जबरदस्ती खींच रहा हूँ,
ये जो मैं तुमको सरल और सहज दिख रहा हूँ,
आज के इस महंगे समाज में बड़ा सस्ता बिक रहा हूँ,
कभी जीवन के इस दौर से लड़ना तो कभी जीना सीख रहा हूँ,
दर्द झेलकर, जिंदगी को समेटना सीख रहा हूँ,
ये जो मैं तुमको सरल और सहज दिख रहा हूँ,
आज के इस महेंगे समाज में बड़ा सस्ता बिक रहा हूँ,
कवि का परिचय
सूरज रावत, मूल निवासी लोहाघाट, चंपावत, उत्तराखंड। वर्तमान में देहरादून में निजी कंपनी में कार्यरत।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।