युवा कवि सूरज रावत की कविता- लो जी फिर उठ गये हम
लो जी फिर उठ गये हम,
कुछ फ़र्ज और कुछ कर्तव्य
और कुछ ख़्वाबों को पूरा करने के लिये
फ़िर उठ गये हम,
आज दिल मैं सुकून नहीं, चैन की नींद नहीं,
कुछ सपने हैं अभी अधूरे,
कुछ उम्मीदें अभी करनी हैं और पूरी,
इसलिए लो जी फिर उठ गये हम,
क्या करूँ सोना मै भी चाहता हूँ,
सपनों की गहरी नींद मैं खोना मै भी चाहता हूँ,
क्या करूँ ये खुली आँखों के सपने जो पूरे करने हैं,
इसलिए लो जी फिर उठ गये हम, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
अब चैन भी खो दिया और नींद भी गँवाई है,
अरे हमें पालते, पोछते, बड़ा करते
हमारे माँ बापू ने अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगायी है,
उनका कर्ज जो उतारना है,
इसलिए लो जी फिर उठ गये हम,
आज ना थकूँगा, ना ही हार मानूंगा,
एक ही जिंदगी है इसको व्यर्थ ना जाने दूंगा,
जो सोचा है उसको पूरा करना है मैंने,
आने वाला हर पल मजे मैं बिताना है मैंने,
उसके लिए आज कर्मों की साख जलाऊंगा,
इसलिए लो जी फिर उठ गये हम, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
नहीं पता दुनिया मैं कैसे सुकून से,
आराम से रह लेते हैं लोग,
कैसे ऐसी छोटी सी, बेरंग सी जिंदगी जी लेते हैं लोग ,
हमें जिंदगी काटनी नहीं, खुलकर जीनी है,
हर ख्वाब , हर सपने को पूरा करना है,
आज दिन रात एक करके मुकाम तक पहुँचना है,
इसलिए लो जी फिर उठ गये हैं,
कुछ कहेंगे हमें पागल, कुछ कहेंगे, सरफिरा,
कहने दो दुनिया को , बोलने दो लोगों को,
लोगों का काम है बोलना,
हां हैं हम सिरफिरे पागल,
क्योंकि औकात के बाहर के सपने भी हमने ही देखें हैं,
इसलिए
लो जी फिर उठ गये हम।
कवि का परिचय
सूरज रावत, मूल निवासी लोहाघाट, चंपावत, उत्तराखंड। वर्तमान में देहरादून में निजी कंपनी में कार्यरत।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।