योगेन्द्र पाण्डेय की कविता- गंगा के घाट में

गंगा
गंगा के घाट पर बैठकर
गंगा को निहारते हुए
बीत जाता है समय
जल्दी जल्दी
गंगा की गहराई जितनी
गहरी हैं विचारों की दुनिया
जैसे मन डूबा जाता है
विचारों की अथाह गहराई में।
मैं निहारता हूं गंगा के गोद में
खेल रहे नावों को
इस पार से उस पार
गंगा को लांघते हुए लोगों को। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
गंगा का होना जरूरी है
मल्लाहों और पंडों के
रोजी रोटी के लिए
आस्था और विश्वास से भरे
सनातन के पुजारियों के लिए
गंगा का होना जरूरी है
मुझ कवि को
कविता लिखने के लिए।।
कवि का परिचय
कवि योगेन्द्र पाण्डेय
सलेमपुर, देवरिया, उत्तर प्रदेश।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।