शिक्षक श्यामलाल भारती की कविता-पिंजरा बंधन का
पिंजरा बंधन का
पंख लिए मैं उड़ना चाहूं
पंख कतरने को आतुर तुम
दूर आसमान में उड़ना चाहूं
पिंजरा लिए खड़े हो तुम
पेड़ों पर मैं बैठना चाहूं
पेड़ काटने को आतुर तुम
मधुर स्वर में गीत गाना चाहूं
आतुर गीत कुचलने को तुम
खुश होकर मैं जीना चाहूं
क्यों मारने पर, तुले हो तुम
पंछी आजाद मैं आसमान का
ऊंची उड़ान भरने तो दो तुम
सच में, मैं जीना चाहूं
क्यों कोख में ही मिटाते हो तुम
कसूर बस मेरा इतना
मेरे से ही जन्में हो तुम
कब समझोगे दर्द भला मेरा
मुझे जगत में आने दो तुम
मै आसमान में उड़ना चा हूं
आसमान में उड़ने दो तुम
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।