शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-इंसान क्यों डरा डरा सा
इंसान क्यों डरा डरा सा
क्यों वीरान सी लगती ये धरती,
लगता शहर भी सुनसान सा।
यही लगता खुदा नाराज हमसे,
शायद इंसान ही कसूरवार सा।।
क्या हुई होगी गलती इंसानों से,
इंसान को इंसानों से डर सा।
लगता कभी खत्म न होगा डर,
हर आदमी खुद से परेशान सा।।
क्या खौफ सच में कोरोना का,
क्यों लग रहा हृदय में डर सा।
परिंदे तो बेखौफ उड़ान भरते,
दिखता नहीं उनमें कुछ खौफ सा।
जहां देखो चारों तरफ वेहोशी सी,
नशा छाया हो जैसे शराब सा।
क्यों भागता फिर रहा इंसान यहां,
गलियों का कोना भी सुनसान सा
चारों तरफ देखा करुण रुदन ही,
कातिल शत्रु का क्यों एहसास सा
मिटा दो वजूद शत्रु का मिलकर,
तभी जीवन लगेगा खुशहाल सा।।
क्यों नियम नहीं निभाता इंसा यहां
मत बना धरती को वीरान सा।
मास्क दूरी सफाई नियम निभा,
दुःख लगेगा तुझे यहां आसान सा
वेबजह क्यों है बाहर निकलना,
वतन पर कर कुछ एहसान सा।
जिंदगी से बढ़कर नहीं कुछ यहां,
अपनों पर कर कुछ एहसान सा।।
क्यों वीरान सी लगती ये धरती,
लगता शहर भी सुनसान सा।
जिंदगी एक नेमत खुदा की,
कर खुद पर कुछ एहसान सा।।
करेगा नियम पालन जब इंसान,
तभी होगा जीवन खुशहाल सा।
बुरा वक्त जरूर गुजरेगा एक दिन,
चला जाएगा कोरोना शांत सा।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर एकदिन चला जाएगा कोरोना, उम्मीद बधाती रचना