शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता-बेरोजगारी की भूख

बेरोजगारी की भूख
आज उठ रही हिरदय में मेरे।
न जानें क्यों इक हूक।।
क्यों बेरोजगारी तगमा लिए।
आ रही निशान बनकर अचूक।।
सरकारें न जानें चुप क्यों यहां।
क्या मिटेगी बेरोजगारों की भूख।।
भटक रहा हाथों में लिए डिग्रियां।
थक गया बदन, आखें भी गई हैं सूख।।
कसूर क्या है उसका डिग्री लेकर।
शायद हो गई उससे कुछ चूक।।
डंका तो बिगुल लिए जोरों से बज रहा।
क्यों कर रही हैं सरकारें ये चूक।।
पथ पर चलता जा रहा है वो।
डिग्रियों को लिए भरे पड़े हैं संदूक।।
कौन खुलवाए इन संदूकों को।
क्यों बन बैठे हैं आज सभी मूक।।
बेरोजगारों की कतारें लगी है यहां।
मिटाने को आतुर अपनी भूख।।
थमा रहे क्यों डिग्रियां हाथों में उनके।
जैसे बिन गोली है बंदूक।।
खड़ी है फौजें बेरोजगारों की।
लिए हिरदय में इक हूक।।
लगता धरा में शासन की।
बाणी भी हो गई है मूक।।
कोई तो जाने इनकी पीड़ा।
कब मिटेगी इन सबकी भूख।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।