उत्तराखंड के शहीद राज्य आंदोलनकारियों की याद में राजेंद्र बहुगुणा की कविता- हर जन-मन का उत्तराखंड
शान्त सुशुप्त उत्तराखंड, हर आदर्शता का आवेश है।
त्याग तपस्या बलिदान का, देता सदा सन्देश है।।
पृथक राज्य उत्तराखंड, जन – जन ने जब बिगुल बजाया।
मानव रुपी राक्षस ने आकर, इस पर दमन चक्र चलाया।।
वो राक्षस हुआ न जिनका मां से जन्म, पहिचाना न जिसने बहिनों का सिन्दूर।
शासक सत्ता के नाम पर, बने ये भारत मां पर नासूर।। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
शान्त सुशुप्त हिमालय को, जो आज जलाना चाहेगा।
समझ लो हिमालय हिम घर है, स्वयं जलकर भस्म हो जायेगा।।
सत्ता के लोलुप धृतराष्ट्रों, जनहृदय विरल आवाज पहचानो।
राष्ट्रभक्त उत्तराखंड पर, इस कदर जुर्म न ढालो।।
भारत की समृद्धि स्वाभिमान को, राज्य उत्तराखंड बनाना है।
खाकर सौगन्ध मातृभूमि की, शहीदों का बलिदान बचाना है।।
कवि का परिचय
टिहरी गढ़वाल निवासी राजेन्द्र बहुगुणा एक वरिष्ठ उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी हैं। साथ ही शिक्षा-शिक्षण के क्षेत्र में उन्हे शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। वह जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ उत्तराखंड के निवर्तमान प्रान्तीय महामंत्री रह चुके हैं। विभिन्न सामाजिक, शैक्षिक एवं विधिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर सक्रियता से कार्य करते रहे हैं। इनकी ये कविता उस कालखंड की है, जब उत्तराखंड राज्य आन्दोलन अपने चरम पर था वहीं दूसरी ओर तत्कालिक सत्ता-शासन राज्य आंदोलनकारियों पर जुर्म ढाह रहे थे।
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