आशीष उपाध्याय की कविता- ये जो चमक रहा है हमारे नाम का सितारा
संघर्ष
ये जो चमक रहा है हमारे नाम का सितारा,
कभी हम भी थे बिखरी हुई धूल से।
मेरे जानने वाले अनदेखा कर गुजर जाते थे,
और कहते थे भूल गये हम भूल से।।
मेरी सफलता के पीछे माँ-बाप के संघर्षों की,
बहुत लम्बी कहानी है।
वक़्त पे फीस जमा न कर पाने पर,
कभी हम भी निकाले गये थे स्कूल से।।
आज हम हैं जिनके आँखों के तारे,
कभी हम भी चुभे थे उनको शूल से।
चन्दन समझ कर लिपटने को बेताब है जमाना,
कभी हम भी थे इनके लिए बबूल से।।
हम हँस तो रहे हैं सबके साथ महफ़िल में लेकिन,
मेरे दिल पर छाले इनके तानों की निशानी रहे हैं।
घास जला कर रोटियां बनाई है चूल्हे पर,
उन्होंने कभी जो हाथ रहे हैं कोमल फूल से।।
वक़्त पे फीस जमा न कर पाने पर,
कभी हम भी निकाले गये थे स्कूल से।।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
परिचय-पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रूची है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।