संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा, लोककला ऐपण को जमीन से उठाकर विश्वस्तर तक पहुंचाया नमिता नेः आशिता डोभाल
संस्कृति और सभ्यताओं का समागम अगर दुनिया में कहीं है तो वो हमारे देवभूमि उत्तराखंड में है। जो हमारी देश दुनिया में एक विशेष पहचान बनाते है। इसके संरक्षण का जिम्मा वैसे तो यहां के हर वासी का है, पर इस लोक में जन्मे कुछ ऐसे साधक और संवाहक है जो इन सब को संजोने और संवारने की कवायद किए हुए है।
संस्कृति को देखने की ललक
जब हम कहीं जाते है और वहां की संस्कृति और सभ्यता को देखने की ललक जब हमारे मन को लालायित करती है। सबसे पहले हम वहां देखते है कि लोक के प्राणदायक वो कर्मयोगी कौन हैं। जिनके तप और संकल्प से ये पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे पास धरोहर के रूप रहती है। आज के इस लेख में संस्कृति के सच्चे साधकों में एक नाम है नमिता तिवारी। जो पिछले दो दशक से नए नए कलेवर और कैनवास पर अपनी कला के हुनर की छाप छोड़ रही हैं। जो आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत है प्रेरणादायक सिद्ध होगी।
संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा
“संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा” का वर्णन आज मैं अपनी लेखनी के माध्यम से करने जा रही हूं। आज उत्तराखंड जैसे राज्य में संस्कृति दम तोड़ती नजर आ रही है, पर नमिता तिवारी जैसे लोग इसे जीवंत किए हुए है। उत्तराखंड का इतिहास और संस्कृति हमेशा से ही शोध का विषय रहे है कुछ शोध हुए भी है। पर वो ना के बराबर हैं और शायद ये वही कर्मयोगी हैं, जिनकी मेहनत और तपस्या से वो शोध पूरे हो पाते हैं।
बेटियों के इतिहास ने किया गौरवांवित
बेटियों का इतिहास उत्तराखंड को हमेशा से गौरवान्वित कराता आया है। सदियों पुराना नाता रहा है। यहां की माटी में समय समय पर प्रतिभाशाली बेटियों का जन्म हुआ है। जैसे- तीलू रौतेली, नंदा, गौरा, रामी बौराणी, बचेंद्री पाल,बसंती बिष्ट और न जाने कितनी प्रतिभाओं की धनी बेटियों का नाता यहीं की माटी से रहा है। जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है।
मेहनत और दृढ़ संकल्प का नाम है नमिता
इस सब के पीछे उनकी मेहनत, लगन, दृढ़ संकल्प और उनकी इच्छा शक्ति रही है,बल्कि पहाड़ के परिपेक्ष में एक कहावत काफी प्रचलित है कि “पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी पहाड़ के काम नी आनी”। अब वक्त आ गया है कि यहां की जवानी यहीं के काम आएगी। बशर्ते अपने अंदर के सोए हुए हुनर को जगाने की हैं। इसी हुनर की मिसाल को कायम कर दिखाया है मूलतः अल्मोड़ा जिले की बेटी नमिता तिवारी ने। उनका जन्म टिहरी गढ़वाल (पुरानी टिहरी) में हुआ। उसने अपने जीवन को कलात्मक और रचनात्मक कार्यों को समर्पित किया हुआ है। उसने कुमाऊं की एक लोककला ऐपण को जमीन से उठाकर अन्य चीजों पर बनाने की सोची और उसमे वो सफल भी रही है।
तबादलों के बीच अल्मोड़ा में पूरी की शिक्षा
नमिता तिवारी की मां एक कुशल गृहणी और उनके पिता लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर थे। आमतौर पर देखा जाता है कि हर नौकरी वाले इंसान की जिंदगी में तबादले होते रहते हैं। इनके पिता के साथ भी वही होता था, जिससे इन सब भाई बहनों की शिक्षा प्रभावित होती गई। इस पर वर्ष 1993 में इनके माता पिता ने इनको अल्मोड़ा में शिफ्ट करने का फैसला लिया। ताकि ये लोग एक जगह रहकर अपनी आगे की शिक्षा पूर्ण कर सके। अल्मोड़ा से ही नमिता जी ने अपनी स्नातकोत्तर तक की शिक्षा पूर्ण की।
पहली गुरु हमारी मां
हमारी पहली गुरु हमारी मां ही होती है। क्योंकि बचपन हमारी पहली पाठशाला होती है और इस पाठशाला की संचालक हमारी मां होती है। सृजन और निर्माण की शक्ति प्रकृति ने सिर्फ नारी जाति को ही प्रदान की है। वो चाहे किसी भी रूप में हो। नमिता का कहना है कि- मैंने न दादी देखी और न नानी। बचपन से सारे काम अपनी मां को करते हुए देखा। कुमाऊं मंडल की प्रसिद्ध लोककला ऐपण को भी इन्होंने अपने घर में बचपन से बनते देखा। जो खास मौकों और तीज त्यौहारों पर घर की देहरी पर लाल मिट्टी (गेरू रंग) पर बिस्वार ( चावल का आटा) से उनकी मां बनाती थी। जो उन्हें बहुत आकर्षित करती थी। बचपन से ही अपनी मां के साथ ऐपण में अपनी कला के हुनर को निखारने लगी थी। तब तक उन्हें दूर दूर तक ये ख्याल भी नहीं आता था कि एक दिन यही लोककला उनकी पहचान बनेगी, जो विश्व स्तर पर उन्हें सम्मान के साथ जीना सिखाएगी और मचों पर सम्मानित करवाएगी।
बचपन से ही प्रतिभा की धनी
नमिता जी बचपन से ही प्रतिभा की धनी व्यक्तित्व रही हैं। पहाड़ों में महिलाओं की शिक्षा काफी चुनौतीपूर्ण रहती है और यदि कोई पढ़ लिख कर कुछ करना भी चाहती है तो घर परिवार उसे स्वीकार नहीं करता। उसे नकारा जाता है। पढ़ने लिखने के बाद मां बाप की सोच होती है या तो सरकारी नौकरी या फिर शादी। नमिता को भी घर से हिदायत दी गई थी कि उन्हें सरकारी नौकरी की तैयारी करनी है। उनके अंदर का सृजनात्मक मन तो कुछ और करने को आतुर रहता था।
रचनाशीलता को निखारने का यहां मिला मौका
संस्कृति नगरी अल्मोड़ा शुरू से ही सृजनात्मक गतिविधियों का केंद्र रहा है। वहां समय समय पर नई नई प्रतिभाओं के हुनर के निखारने के मंच तैयार होते हैं। सरकारी और गैर सरकारी संगठनों की ओर से समय समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उसका क्रम आज भी जारी है। नमिता को भी उन प्रशिक्षण कार्यक्रमों की जानकारी मिली और उनमें प्रतिभाग करने का मौका भी मिला। इससे उनकी रचनाशीलता को निखरने का सुनहरा मौका मिलता गया। फिर जब भी समय मिलता वो अपने घर में छोटे छोटे ऐपण बनाने लगी थी। फिर क्या था आत्म विश्वास बढ़ता गया और रचनाशीलता का विस्तार होता गया।
घर की देहरी से केनवास तक पहुंचा ऐपण
पहले घर की देहरी में बनने वाले ऐपण अब नए नए कलेवर और केनवास पर बनने लगे। वैसे भी रचनाओं के संसार का कोई परिसीमन नहीं होता है। सन 2002 में अपने घर की दहलीज पर बनने वाले ऐपण को उच्च स्तर पर पहुंचाने में उनके “सफर के पंखों की उड़ान” में उनका साथ उनके परिवार ने भी दिया। 2006 में उनकी मुलाकात किरन साह जी से हुई। उनके साथ मिलकर उन्होंने कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। जिसका क्रम आज भी जारी है। नमिता जी शुरुआत से ही जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाली इंसान रही है वो चाहे आपने काम की हो या घर की हो,उनकी ईमानदारी और काम के प्रति निष्ठा देखते हुए कई लोग उनसे तीज त्यौहारों और शादी ब्याह के मौको पर अपने घर के ऐपण बनाने की जिम्मेदारी सौंपते है।
मिल चुके हैं कई पुरस्कार
सन 2011 में अल्मोड़ा में आयोजित नंदादेवी महोत्सव में “ऐपण प्रतियोगता” आयोजित की गई। जिसमें उन्होंने पहली बार प्रतिभाग किया और प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया। इससे उनका उत्साह वर्धन हुआ व सन 2012 में जिला उद्योग केन्द्र अल्मोड़ा के सौजन्य से “हस्तशिल्प पुरस्कार” देने की घोषणा हुई। इसमें जिले में जितने भी हस्तशिल्प पर काम कर रहे थे, सबने प्रतिभाग किया। नमिता ने इस प्रतियोगिता में भी प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया। उससे मनोबल और बढ़ता गया और विश्वास हो गया और दृढ़ संकल्प ले लिया कि अपनी मूल संस्कृति को ही अपनी कमाई और जीने का जरिया बनाया जाय। इस तरह से फिर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग के लिए नए नए प्रयोग करने को योजना बना डाली। नए नए प्रयोग करने की शुरुआत हो गई व वर्ष 2013 में “उत्तराखंड राज्य स्तरीय हस्तशिल्प पुरस्कार” में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। अब इरादे और मजबूत हो गए और आगे बढ़ने की दिशाएं मिलने लगी।
मुख्य प्रशिक्षक की भूमिका का मौका
भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय व हस्तशिल्प विभाग अल्मोड़ा के सौजन्य से 50 महिलाओं का पहला प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करवाया गया। इसमें उन्होंने मुख्य प्रशिक्षक की भूमिका में प्रतिभाग किया। उनके कार्यों की गुणवत्ता की समीक्षा तत्कालीन कार्यरत उत्तराखंड की सचिव मनीषा पंवार ने की। साथ ही उन्होंने समय समय पर इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी। तत्पश्चात जिला उद्योग केंद्र अल्मोड़ा व हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट्स या कोई भी सरकारी संगठन हो या गैर सरकारी संगठन हो। सभी के साथ मिलकर नमिता ने मुख्य प्रशिक्षक की भूमिकाएं निभाई। इसका क्रम आज भी जारी है। उनके काम की इन्नोवेशन को देखते हुए वर्ष 2015 (16-18 अगस्त) भारतीय तकनीकी संस्थान (IIT) रुड़की में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में आपने बतौर प्रशिक्षक के रूप में उन्हें आमंत्रित किया गया। इसमें उन्होंने आइआइटी के छात्रों को ऐपण की संपूर्ण जानकारी दी। इस तरह से आपने अलग -अलग तरह की ऐपण कला का विस्तार किया।
ब्रांड का नाम चेली ऐपण
9 नवम्बर 2015 में तत्कालीन जिलाधिकारी सविन बसंल व जिला उद्योग केन्द्र अल्मोड़ा में कार्यरत कविता भगत के सहयोग से नमिता ने “अल्मोड़ा ऐपण शिल्पकला स्वायत सहकारिता” का गठन किया। इसके ब्रांड का नाम “चेली ऐपण” है। इसमें बहुत सारे इन्नोवेशन किए जो आज की पीढ़ी को ध्यान में रहकर किए गए।
बनाई गई शॉर्ट फिल्म
पहाड़ में महिलाएं हमेशा कार्यबोझ से जूझती हैं, पर नमिता जैसी महिलाएं जिनकी रचनाओं को देखने देश के कोनों कोनों से लोग आते है। उनसे सीख कर जाते है। उनकी कला के हुनर को देखते हुए प्रोजेक्ट फ्युल ने उनकी एक शॉर्ट फिल्म बनाई। जिसे लोगो ने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी खूब सराहा। सिर्फ इतना ही नहीं देश में जाने माने “फैशन के गढ़” नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT) में भी नमिता अपनी लोककला ऐपण के हुनर का लोहा मनवा चुकी हैं।वहां के छात्र छात्राओं को ऑन लाइन ट्रेनिंग देकर देश दुनिया को उत्तराखंड की लोक कला से रूबरू करवा रही है।
पहाड़ों में प्रतिभाओं की कमी नहीं
पहाड़ों में प्रतिभाओं की कमी न थी और न है। बस जरूरत है तो उन प्रतिभाओं को पहचानने की। उनके हुनर को निखारने की। जहां हम उत्तराखंडी आज अपनी संस्कृति और परंपराओं को खोते हुए दिखते हैं, वहीं नमिता तिवारी जैसे साधक पहाड़ में अपनी तपस्या में लीन दिखते हैं। उनसे पहाड़ का अस्तित्व और अस्मिता पर कोई सवाल नहीं होता है। क्योंकि ये वही सच्चे कर्मयोगी हैं, जो निश्वार्थ भाव से अपनी परम्पराओं और संस्कृति के समागम को बचाए हुए है।
नमिता की संस्था चेली ऐपण के उत्पादों की सूची
2014- फाइल फोल्डर, डायरी, पैन स्टैंड, वॉल फ्रेमिंग, टेबल क्लॉथ, कुशन कवर, पेंसिल पाउच, रुमाल मनी पाउच।
2015- कॉटन साड़ी, सिल्क साड़ी, लेडीज सूट, लेडीज वेस्कोट, टी शर्ट, पर्दा, बैग, कैंडिल लैंप, शीशा, स्कार्फ, कॉटन दुपट्टा।
2016- जेंट्स टाई, जेंट्स कमीज, जेंट्स वेस्कोट, टी कोस्टर, टोपी, लकड़ी ट्रे, लकड़ी हेयर क्लिप, वुडन बेंगल, वुडन ड्राय फ्रूट बॉक्स, वुडन ज्वैलरी बॉक्स, वुडन ओखली, की- हैंगर, की-रिंग, लेपटॉप बैग।
2017- दीवार घड़ी, तांबे के जग, विवाह चौकी, वुडन मनी बैंक, धूप स्टैंड।
2018- डाइनिंग टेबल मेट, कैंडिल होल्डर, टिशू होल्डर, बुक मार्क।
2019- ज्युती पट्टा, कैंडिल, थाली, लोटे, कलश, वुलन लेडीज सूट, मिट्टी के दीए, जुट बैग, जूट फ़ाइल फोल्डर।
2020- वुडन मैग्नेट, सिल्क बैग, वुलन शॉल, मॉफ्लर, वुडन स्टॉल, वुडन नेम प्लेट, तोरण।
2021- बेड सीट, काउच सेट, कैलेंडर।
जानकारी के लिए नमिता तिवारी से इन नंबरों पर करें संपर्क
9411520125
7500250763
लेखिका का परिचय
आशिता डोभाल
सामाजिक कार्यकत्री
ग्राम और पोस्ट कोटियालगांव नौगांव उत्तरकाशी।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर प्रेरणा दायक परिचय.