वैज्ञानिक की नजर में कविता से जानिए दर्पण का महत्व
[ प्रकाश का सिद्धान्त बताता है कि किसी वस्तु का पूरा प्रतिबिंब देखने के लिये उसकी कुल लंबाई की कम से कम आधी लंबाई का दर्पण होना चाहिये। उसी प्रकार जैसा है वैसा ही प्रतिबिंब केवल समतल दर्पण में दिखेगा। उत्तल या अवतल में प्रतिबिंब बिगड़ जायेगा। दर्पण के इन सिद्धान्तों का हमें जीवन में भी उपयोग है। प्रस्तुत है दर्पण को लेकर विज्ञान कविता]
दर्पण
प्रतिबिंब देखने को पूरा दर्पण आधा पूरा है
लेकिन दूरी तय कर लो तो उसके बिना अधूरा है
दर्पण के हो बहुत निकट तो टुकड़ा टुकड़ा दिखलाये
और दूर जो अधिक हुए तो नहीं समझ में कुछ आये
दर्पण में सब कुछ दिखता है अच्छाई और बुराई भी
बतला देता सब कुछ सच सच रंगत भी या झाँई भी
लेकिन दर्पण समतल होना इसके लिये जरूरी है
वह यदि मुड़ा, झुका या टेढ़ा तो छवि गलत अधूरी है
इसीलिये दर्पण अच्छा हो, निश्चित अन्तर और प्रकाश
दृष्टि पारखी, इच्छा भी हो और देखने का अवकाश
दर्पण झूठ नहीं बतलाता सुनने की हो तैयारी
सुनें ध्यान से, करें मनन, फिर समझें बात पूर्ण सारी
दर्पण के हों खड़े सामने किंतु जाँचने अपने को
मुझ सा सुन्दर कहीं न कोई छोड़ें इस भ्रम सपने को
आयें अब बन जायें हम सब दर्पण एक दूसरे के
आधे हों लेकिन समतल हों, बिना झिझक निज को परखें
लेखक का परिचय
नाम: मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी
जन्म: 13 जुलाई, 1948 ( वास्तविक ), 1947 ( प्रमाणपत्रीय ), वाराणसी
शिक्षा: एम.एससी., भूविज्ञान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएचडी. (हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय)
व्यावसायिक कार्य: डी.बी.एस. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देहरादून में भूविज्ञान अध्यापन
रुचि:
- विज्ञान शोध एवं लेखन
25 शोध पत्र प्रकाशित
एक पुस्तक “मैग्नेसाइट: एक भूवैज्ञानिक अध्ययन” प्रकाशित - लोकप्रिय विज्ञान लेखन
एक पुस्तक “समय की शिला पर” (भूविज्ञान आधारित ललित निबन्ध संग्रह) तथा एक विज्ञान कविता संग्रह “विज्ञान रस सीकर” प्रकाशित
अनेक लोकप्रिय विज्ञान लेख प्रकाशित, सम्पादक “विज्ञान परिचर्चा” ( उत्तराखण्ड से प्रकाशित लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका ) - हिन्दी साहित्य
प्रकाशित पुस्तकें - युगमानव (श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित खण्डकाव्य)
- गीत शिवाजी (छत्रपति शिवाजी के जीवन पर गीत संग्रह)
- साहित्य रथी ( भारतीय साहित्यकार परिचय लेख संग्रह )
- हिन्दी नीतिशतक (भर्तृहरिकृत “नीतिशतकम्” का हिन्दी समवृत्त भावानुवाद)
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएँ प्रकाशित
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।