अष्टमी और नवमी एक ही दिन, कीजिए कन्या पूजन, इन बातों का रखें ख्याल
नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि एक ही दिन 24 अक्टूबर को पड़ रही है। इस दिन घरों और मंदिरो में कन्या पूजन किया जाता है। मंदिरों में भीड़ की संभावना के मद्देनजर कन्या पूजन ठीक नहीं है। इसलिए घरों में ही त्योहार मनाएं। कन्या का पूजन करें, लेकिन कोरोना के नियमों का भी ख्याल रखें।
नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व माना गया है। नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथियों पर मां महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा करने का प्रावधान है। इन तिथियों पर कन्याओं को घरों में बुलाकर भोजन कराया जाता है। उन्हें वस्त्र और अन्य वस्तुएं दान में दी जाती हैं। जानते हैं नवरात्रि में कन्या पूजन का क्या महत्व है और कन्या पूजन के समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। यहां बता रहे हैं डॉक्टर आचार्य सुशांत राज।
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि पर कन्या पूजन करने से मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की हर इच्छा को पूर्ण करती हैं। शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन करने से सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कन्या पूजन से पहले हवन करवाने का प्रावधान होती है मां हवन कराने और कन्या पूजन करने से अपनी कृपा दृष्टि बरसाती हैं।
किन बातों का ध्यान रखना चाहिए
नवरात्रि में नौ कन्याओं को भोजन करवाना चाहिए क्योंकि नौं कन्याओं को देवी दुर्गा के नौं स्वरुपों का प्रतीक माना जाता है। कन्याओं के साथ एक बालक को भी भोजन करवाना आवश्यक होता है, क्योंकि उन्हें बटुक भैरव का प्रतीक माना जाता है। मां के साथ भैरव की पूजा आवश्यक मानी गई है। 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष की आयु तक की कन्याओं का कंजक पूजन करना चाहिए।
कन्या पूजन जानें पूरी विधि
कन्याओं को पूजन के लिए पहले आमंत्रण देना चाहिए। कन्याओं के घर में पधारने पर उन्हें देवी स्वरुप मान कर सम्मान पूर्वक आसन पर बिठाकर उनके पैर धुलवाएं। उसके बाद कुमकुम से तिलक करें, लाला रंग की चुनरी उढ़ाएं । माता रानी का ध्यान करते हुए पूजन करें और जो भोजन आपने प्रसाद स्वरुप बनाया है उसे मातारानी को अर्पित करने के पश्चात् कन्याओं को खिलाएं। भोजन करवाने के बाद दान-दक्षिणा देकर कन्याओं से पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लें और उनको प्रसन्नता पूर्वक विदा करें।
एक साथ पड़ेगी अष्टमी और नवमी तिथि
डॉक्टर आर्चाय सुशांत राज ने बताया की माता की भक्ति में लीन भक्तों को अब अष्टमी, नवमी और दशहरा (विजयादशमी) का इंतजार है। इस साल अष्टमी और नवमी तिथि एक साथ पड़ने के कारण लोगों के बीच अष्टमी और नवमी तिथि को लेकर असमंजस है। डॉक्टर आर्चाय सुशांत राज के मुताबिक, अष्टमी और नवमी एक ही दिन होने के बावजूद भी देवी मां की अराधना के लिए भक्तों को पूरे नौ दिन मिलेंगे। इस साल अष्टमी तिथि का प्रारंभ 23 अक्टूबर (शुक्रवार) को सुबह 06 बजकर 57 मिनट से हो रहा है, जो कि अगले दिन 24 अक्टूबर (शनिवार) को सुबह 06 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। डॉक्टर आर्चाय सुशांत राज के अनुसार, जो लोग पहला और आखिरी नवरात्रि व्रत रखते हैं, उन्हें अष्टमी व्रत 24 अक्टूबर को रखना चाहिए।
इस दिन महागौरी की पूजा का विधान है। नवरात्रि व्रत पारण 25 अक्टूबर को किया जाएगा। नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है। दशमी तिथि 25 अक्टूबर से शुरू होकर 26 अक्टूबर की सुबह 9 बजे तक रहेगी। ऐसे में इस साल दशहरा का त्योहार 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शिव मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।