बदल रहा है इतिहास, आने वाली पीढ़ियों को किस्सों में सुनाना- कभी इंडिया गेट में जलती थी अमर जवान ज्योति की मशाल
अब दिल्ली में इंडिया गेट पर बने अमर जवान ज्योति की मशाल यहां देखने को नहीं मिलेगी। इंडिया गेट में ये मशाल अब हमेशा के लिये बुझा दी जाएगी। अब यह मशाल नेशनल वॉर मेमोरियल की मशाल के साथ मिल जाएगी।
ये दिया जा रहा है तर्क
इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि दो जगहों पर लौ (मशाल) का रख रखाव करना काफी मुश्किल हो रहा है। सेना के सूत्रों का यह भी कहना है कि अब जबकि देश के शहीदों के लिये नेशनल वॉर मेमोरियल बन गया है, तो फिर अमर जवान ज्योति पर क्यों अलग से ज्योति जलाई जाती रहे। सेना के सूत्रों का यह भी कहना है कि नेशनल वॉर मेमोरियल में सारे शहीदों के नाम हैं, शहीदों के परिवार के लोग यहीं आते हैं। सेना के अधिकारियों ने बताया कि अमर जवान ज्योति का शुक्रवार दोपहर को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर जल रही लौ में विलय किया जाएगा। जोकि इंडिया गेट के दूसरी तरफ केवल 400 मीटर की दूरी पर स्थित है।
सरकार ने दी ये सफाई
इस बीच केंद्र सरकार ने सफाई दी कि इंडिया गेट पर पिछले 50 साल से जल रही अमर जवान ज्योति को बुझाया नहीं जा रहा है। शुक्रवार को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर जल रही लौ में विलय किया जाएगा। अमर जवान ज्योति की लौ के एक हिस्से को युद्ध स्मारक तक ले जाया जाएगा। इस कदम की तीखी आलोचना के बीच सरकार ने इसे लेकर कहा कि बहुत सारी गलत सूचनाएं फैलाई जा रही है। सरकार के सूत्रों ने कहा कि अमर जवान ज्योति की लौ बुझ नहीं रही है, बल्कि इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जल रही ज्वाला में मिलाया जा रहा है। ये अजीब बात थी कि अमर जवान ज्योति की लौ ने 1971 और अन्य युद्धों में जान गंवाने वाले जवानों को श्रद्धांजलि दी, लेकिन उनका कोई भी नाम वहां मौजूद नहीं है।
2019 को किया गया था उद्घाटन
25 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री ने वॉर मेमोरियल का उद्घाटन किया था। 40 एकड़ जमीन पर 176 करोड़ की लागत से इसे बनाया गया है। जहां 25,942 सैनिकों के नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं। गौरतलब है कि इंडिया गेट को ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों की याद में बनवाया गया था। इसके बाद 1972 में 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में अमर जवान ज्योति जलाई गई। इस युद्ध में भारत की विजय हुई थी और बांग्लादेश का गठन हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को इसका उद्घाटन किया था।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।