रोजगार को लेकर सरकार के दावे हैं हवा हवाईः कांग्रेस
उत्तराखंड कांग्रेस ने रोजगार को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के दावों को हवा हवाई बताया। उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रेस वार्ता के दौरान रोजगार दर में कमी आने और सर्वाधिक रोजगार देने वाले मुख्यमंत्री के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री के सलाहकार उन्हें पूर्ववर्ती सरकारों की ओर से रोजगार के क्षेत्र में किए गए कार्यों का सही-सही विवरण नहीं दे पा रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गरिमा ने कहा कि राज्य गठन के बाद प्रदेश के अंदर जो सरकारी क्षेत्र में 80 फीसद नियुक्तियां हुई हैं, वह कांग्रेसकाल में हुई हैं। चाहे वह उपनल के माध्यम से हो या फिर आउटसोर्सिंग के माध्यम से हों। इसमें अतिथि शिक्षक इत्यादि की भी भर्तियां हैं। जो 20 फीसद बाकी पद हैं, उसमें से सात से आठ फीसद उत्तर प्रदेश से आए हुए कर्मी हैं। बाकी 12 से 15 फीसद विभिन्न सरकारों के द्वारा दिए गए रोजगार हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कांग्रेस नेता गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि यदि प्राइवेट सेक्टर की बात करें तो हरिद्वार से लेकर उधम सिंह नगर तक सिडकुल, पिटकुल इत्यादि की स्थापना से लाखों युवाओं को रोजगार देने का काम कांग्रेस ने किया। इसमें निवेशकों के लिए शर्त का प्रावधान किया गया कि कोई भी प्रतिष्ठान या संस्थान हो, उसे 70 फीसद स्थानीय युवाओं को नौकरी देनी पड़ेगी। दसोनी ने कहा की मुख्यमंत्री के दावों के उलट भाजपा शासन में बड़े-बड़े संस्थान बंद हुए हैं। आईडीपीएल और एचएमटी इसके उदाहरण हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि यदि लघु उद्योग एमएसएमई की बात करें तो कांग्रेस की सरकारों में बहुत सारे लघु उद्योग पहाड़ी क्षेत्रों में खोले गए। इसमें से आज की तारीख में 70 फीसद यूनिट्स बंद हो चुकी हैं, जो बाकी बचे हैं उनमें 15 से 20 फीसद कर्मियों की कटौती की गई है। मात्र तीन साल के अपने कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 32000 सरकारी पदों पर नियुक्तियां की थी। भाजपा शासन में तो छोटी-छोटी वैकेंसी निकाली जा रही हैं और जो बल्क वैकेंसी या बड़ी वैकेंसी है उन्हें अनदेखा किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार में चाहे पुलिस भर्ती हो, रेवेन्यू पुलिस भर्ती हो, प्राथमिक शिक्षा में भर्ती हो, असिस्टेंट टीचर, लेक्चरर, नर्सिंग भर्ती, वन दरोगा भर्ती, महिला कांस्टेबल भर्ती के साथ ही राज्य में दो बार पटवारी भर्ती निकली। दोनों बार कांग्रेस ने ही निकाली। भाजपा की सरकार में तो उपनल से कर्मी निकाले जा रहे हैं, कांग्रेस की सरकार में उन्हें नौकरियां दी गई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गरिमा ने कहा की यदि मुख्यमंत्री धामी के दावों में सत्यता होती तो फिर पिछले 9 दिन से बेरोजगार संघ के युवा राम कंडवाल के नेतृत्व में एकता बिहार में आमरण अनशन पर बेरोजगार क्यों बैठे हुए हैं। दो युवा बीते रोज परेड ग्राउंड स्थित पानी की टंकी में क्यों चढ़ गए। कोरोना वॉरियर्स को कई महीनो तक धरनारत रहना पड़ा, पर नतीजा सिफर ही रहा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गरिमा ने कहा की धामी सरकार में तो बेरोजगार युवाओं को लाठियां से पीटा गया, जेल भेजा गया, गंभीर धाराओं में मुकदमा किया गया। दसौनी ने कहा कि धामी सरकार जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं है और हवा हवाई दावे कर रही है। उन्होंने कहा कि बाहरी लोगों को उत्तराखंड में ढाई सौ वर्ग मीटर की भूमि खरीद पर जो छूट है, वह एक परिवार के एक ही सदस्य को मिलेगी। परिवार के हर सदस्य के नाम से भविष्य में भूमि नहीं खरीदी जा सकेगी। दसौनी ने कहा कि जब तक धामी सरकार 6 दिसंबर 2018 को त्रिवेंद्र रावत सरकार के द्वारा विधानसभा में पारित जमींदारी उन्मूलन विधेयक में जो संशोधन किया गया, उसे रद्द नहीं करती, तब तक ये बातें पाखंड ही मानी जाएगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गरिमा ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री यदि उत्तराखंड की विलुप्त होती भूमि पर इतने ही संवेदनशील हैं, तो उन्हें हिमाचल से भी सख्त और समग्र भू कानून उत्तराखंड को सौगात के रूप में देना चाहिए। किस्तों में राहत देने से कुछ नहीं होगा। हिमाचल तो समय रहते चेत गया। इस वजह से उसके पास अच्छा खासा लैंड बैंक है, लेकिन उत्तराखंड साल दर साल भू माफिया के हाथों लुट रहा है। बड़ी-बड़ी भूमि कब्जाई जा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि स्वयं पूर्व जिलाधिकारी देहरादून द्वारा यह आधिकारिक तौर पर बयान दिया गया कि 2016 के मुकाबले नगर निगम देहरादून के पास मात्र 40 फीसद भूमि बची है। ये अपने आप में बहुत ही चिंतनीय है स्थिति है। गरिमा ने राज्य में तेज रफ्तार से घटती हुई कृषि भूमि पर भी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने अपेक्षा की है कि मुख्यमंत्री इस ओर भी ध्यान देंगे कि राज्य गठन के समय पर उत्तराखंड के पास कितनी हेक्टेयर कृषि भूमि थी और आज कितनी रह गई है?
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।