Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 18, 2024

मातृत्व दिवस पर दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की गजल-माँ का दिल दुख बेटे का देख पिघलता क्यूँ है

मातृत्व दिवस पर दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की गजल-माँ का दिल दुख बेटे का देख पिघलता क्यूँ है।

माँ का दिल दुख बेटे का देख पिघलता क्यूँ है।
देखकर चोट वो मरहम उसे मलता क्यूँ है।।

होती है फ़िक़्र पिता को कहाँ माता जैसी।
बेटे का दुख माँ को ही हर घड़ी खलता क्यूं है।

लाल को पीट गया वो पड़ोसी जब गली में।
चीख सुन पाँव माँ का भागता चलता क्यूँ है।।

क्लास में फ़स्ट आता लाल था जब घर वापस।
तो ख़ुशी के मारे वो दिल यूँ उछलता क्यूँ है।।

है सुबह से भूखी माँ लाल बिना खा ले कैसे।
लाल के मुख में ही पहले कोर डलता क्यूँ है।।

कितना कोमल मोम-सा दिल ये माँ ने पाया है।
सुन शिकायत झूठी दिल आग उगलता क्यूँ है।।

खेल में जीत पुरस्कार लाता है बेटा।
तब गले से लगाने को जी मचलता क्यूँ है।।

कष्ट में रुख़ कड़ा था सुख में हुआ है मुलायम।
ये तेवर झट से माँ का दिल यूँ बदलता क्यूँ है।।

लाल की फ़िक़्र माँ को होती है अपने से अधिक।
दिल ढला त्याग के साँचे से निकलता क्यूँ है।।

घर बाहर लाल कहीं हो माँ को फ़िक़्र है सदा।
साथ दिल लाल के हर वक्त टहलता क्यूँ है।।

जन्म से पहले जुड़े तार रुपेला उनके।
ये अजब प्रेम जहाँ में यहीं पलता क्यूँ है।।

कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “मातृत्व दिवस पर दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की गजल-माँ का दिल दुख बेटे का देख पिघलता क्यूँ है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page