गढ़वाली कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गजल- ल्याखा-पाढ़ा
सुड़ीं-जड़ीं छ्वीं-बतौंम, द्वी-चार ह्वे जांद.
गुणीं-लिखीं कितब्यूंम, नै बिचार ह्वे जांद..
धरोहर च हमरी, यीं बिट्वाऴा-समाऴा,
नै- पुरणि कितब्यूं से, सै अधार ह्वे जांद..
किताब म अंट- संट, कुछ नी लिखेंदू,
नथर इनु साहित्य, सौंगिसार ह्वे जांद..
जौन कबि लेखु छौ, आज ख्वजेड़्यूं च,
अहा क्य ल्याख, ज्यू तार- तार ह्वे जांद..
हमरि साहित्य की खोज, रोज चल़णीं च,
भलि लिखीं बात, सब्यूं स्वीकार ह्वे जांद..
खूब ल्याखा-किताब छापा, छप्यूं रै जालू,
खरीदि बि ल्या किताब, ब्योपार ह्वे जांद..
‘दीन’ जरा-जरा कैरि, साहित्य अगनै बढलु,
बोल़द रा अपड़ि बोली, अफी प्यार ह्वे जांद..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
आज हम अपड़ा साहित्य थैं पढणा कम छवां, वेक ऊपर बड़ीं सुंदर गजल, जरूर पढा.