सरूली सुम्याण की अमर प्रेमकथा पर आधारित गढ़वाली रचना
बजदी बांसुरी ——-
बजदी मनम्वोहनि बांसुरी हो ,
बजदी मनम्वोहिनि बांसुरी ।
धकध्याट करदी हाय जिकूड़ी ,
धकध्याट करदी हो ।।
अछैगे घाम रुमुक पडीगे ,
सूणीकि वंसी मन हरीगे ।
माया लगीगे भारी भिजां ही ,
नातू जुणी बिन जाणी पछांणी ।।1।।
बजदी मनम्वोहिनि ———
सूणीकि बंसी बुरांस हेंसिंगे ,
बंसी कि भौण जिकूण्यूं बसीगे ।
चुपचुप देखण लैगीं हिलासी ,
गोप्यूं क जनि रास रसीगे ।।2।।
बजदी मनम्वोहिनि ———–
सों देवतों की वे मा ही जालू,
सों च भुलों की अन भी नि खालू,
भैजी खुजैई की ल्यावा वेथेही ,
ते तेहि अब मी बर बरालू ।
बजदी मनम्वोहनि————–
डांड्यूं का प्वोर कू होला कुजाणी,
जौं मा बसीगे निठूर पराणी ।
आज सरूली ह्वेगे तउंकी ,
जौं की झलक न देखी न जाणी ।।3।।
बजदी मनम्वोहनि————-
————- किरन पुरोहित हिमपुत्री
लेखिका का परिचय —
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता – श्री दीपेंद्र पुरोहित
माता – श्रीमती दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
आयु – 17 वर्ष
अध्ययनरत – कक्षा 12वीं उत्तीर्ण
निवास, कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।






यीं रंचणा थै मंच द्योण का वास्ता आपको भोत भोत धन्यवाद लोकसाक्ष्य। ।????
भौत बिगरैली रचणा किरण । आनन्द ऐ ग्ये बाँचिक !
आपको भोत भोत धन्यवाद गुरजी ।। आपको आशीष यूं ही बण्यू रौ ।।