युवा कवयित्री किरन पुरोहित की गढ़वाली कविता-बौणूमां आग
बौणूमां आग
ना रो हिलासी, बौण की ।
पीर सुण्योणी तेरी, भौण की।।
बौण बचौण, आला क्वी ।
तेरी हर्याली डाळी, नी फुकी ।।
ना रोया चखुलों, तुम बचि जाला ।
भ्वो भी हमुथैईं, गीत सुणाला ।
सर्ग पसीजलो, बरखा करलो ।
तुमरी सारी, पीर हरोलो ।।
कैन लगाई, बौणुमा आग ।
पूछणा बण का, बासी आज ।।
को जनबरूं से, प्वोर ची ।
कै की मनख्यात, हरची ।।
हर्या बणूं मा न लगावा आग ।
कनके सुधर्ला तब हमरा भाग ।।
मनखी तू मनखी बणि की त रौ ।
व्यर्थ जानबरूं से प्वोर न जौ ।।
कवयित्री का परिचय
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता -दीपेंद्र पुरोहित
माता -दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
अध्ययनरत – हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा।
निवास-कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।