डॉ. महेंद्र पाल सिंह की गढ़वाली कविता, तै शहीद कि याद माँ
त्यार आला बार आला बार आला लोग अपना घर बार आला
घर तै भांति भांति का रंगू न सजाला
पर जु सहीद हवेगी लाम पर
देश का नाम पर
तै शहीद कि माँ
कै द्याली पैलि करछी खीर की ?
कै मुंग लगाली कथा तै अभागा बीर की ?
ओर छाती पर लगया तीर की
कु खेलालू कातिक कि बगवाल फागुण कि होली
आला जब भी येन त्योहार माँ तै की याद माँ रोली
भै-भैंण कु मिलणा कु आलू राखडी कु त्योहार
कै त बाटली भैंण भाई कु प्यार
कै का माथा पर लगाली चिरंजीव कु टीका
कै का कलाई माँ बांधली धागा कु बंधन
आला जब कोई मोका करली माँ व पत्नी रूदन
जै पिता न दिन रात आस करी पाली
आज याद मा पिटदू कपाली
खांद न पीन्दु, दिन रात रोन्दु
देख अनाथ नाती विधवा ब्वारी मूर्छित होन्दू
पुछ्दू कभी पिता का बारा मा अबोध नाती ओंदी वे कि याद पिट्दू व छाती
है शहीद तो मर कर भी अमर ह्वेगी
जब भी कभी इन आलू
महेन तेरी गाथा जरूर गालू
रचनाकार का परिचय
नाम -डॉ. महेंद्र पाल सिंह परमार ( महेन)
शिक्षा- एम0एससी, डीफिल (वनस्पति विज्ञान)
संप्रति-सहायक प्राध्यापक ( राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी)
पता- ग्राम गेंवला (बरसाली), पोस्ट-रतुरी सेरा, जिला –उत्तरकाशी-249193 (उत्तराखंड)
मेल –mahen2004@rediffmail.com
मोबाइल नंबर- 9412076138, 9997976402 ।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।