दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल- पॉड़ि पॉड़ि
पॉड़ि-पॉड़ि
अबि त-कड़क रूड़ नि पड़ि, गौंम सूख पड़िगे.
मौल्यार बगत-अबि बटि, निचट रूख पड़िगे..
गौं का स्वाता- पंदेरा , जरा- जरा टपकड़ाॅ छीं,
ढयौंम बस्यां – बजारौं म- त, पॉड़ि टूट पड़िगे..
एक कप च्या कु-सारु छौ, बजारौं जैकि पींड़कु,
एक कनस्तर पॉणी दगड़, च्या पींड़ा छूट पड़िगे..
ब्यखुन्या-जो छौ टालु, कुजड़ि- कनम घुट्यालु,
आज बगैर पॉणी- घूट बि, रूट से बेरूट पड़िगे..
मीलौं दूर बटि अयां पॉणी पैप, जैऴिगीं-गैऴिगीं,
हैंडपंप खपचांड़म-पॉणी खुज्याड़म, फूट पड़िगे..
पाॅणी बगैर- कनम राला , जो छीं- गौं मुलकम,
निरबै कोरोना अज्यूं बढ, गौं जांड़ा- सूड़ पड़िगे..
खेती तरफ बटि-आंखा बुज्या, हमरा पैलटौं का,
देसा किसान-बिदकी बैठ्यां , सबि बिरुट पड़िगे..
‘दीन’ ! एक हवा-पॉणी छै, अपड़ां मुलका-बेमोल,
बल ! सैरौंम आक्सीजना, गौंम पॉणी-लूट पड़िगे..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।