Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 8, 2024

दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल- पॉड़ि पॉड़ि

दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल- पॉड़ि पॉड़ि।

पॉड़ि-पॉड़ि

अबि त-कड़क रूड़ नि पड़ि, गौंम सूख पड़िगे.
मौल्यार बगत-अबि बटि, निचट रूख पड़िगे..

गौं का स्वाता- पंदेरा , जरा- जरा टपकड़ाॅ छीं,
ढयौंम बस्यां – बजारौं म- त, पॉड़ि टूट पड़िगे..

एक कप च्या कु-सारु छौ, बजारौं जैकि पींड़कु,
एक कनस्तर पॉणी दगड़, च्या पींड़ा छूट पड़िगे..

ब्यखुन्या-जो छौ टालु, कुजड़ि- कनम घुट्यालु,
आज बगैर पॉणी- घूट बि, रूट से बेरूट पड़िगे..

मीलौं दूर बटि अयां पॉणी पैप, जैऴिगीं-गैऴिगीं,
हैंडपंप खपचांड़म-पॉणी खुज्याड़म, फूट पड़िगे..

पाॅणी बगैर- कनम राला , जो छीं- गौं मुलकम,
निरबै कोरोना अज्यूं बढ, गौं जांड़ा- सूड़ पड़िगे..

खेती तरफ बटि-आंखा बुज्या, हमरा पैलटौं का,
देसा किसान-बिदकी बैठ्यां , सबि बिरुट पड़िगे..

‘दीन’ ! एक हवा-पॉणी छै, अपड़ां मुलका-बेमोल,
बल ! सैरौंम आक्सीजना, गौंम पॉणी-लूट पड़िगे..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page