दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की गजल, बागवां आया नया, गुलशन खिलाने के लिए
बागवाँ आया नया, गुलशन खिलाने के लिए।
चाँद आया दूसरा, घर जगमगाने के लिए।।
रात है तो क्या हुआ, डरता अँधेरे से है कौन?
लो दिया जलने लगा, तम को भगाने के लिए।।
चल बसा बेवक़्त वो, प्राणों से प्यारा हमसफ़र।
स्टेपनी बन आया हूँ मैं आगे ले जाने के लिए।।
लौट कर आता नहीं, वापस कोई संसार में।
छोड़ कर मातम चलो, अब घर बसाने के लिए।।
जो रुका मझधार में, वो डूब जाता है वहीं।
नाव बन आया हूँ मैं, साहिल पे जाने के लिए।।
तन्हाई के मर्ज़ से, है जिस्म होता खोखला।
साथ लाया हूँ दवा, तुमको पिलाने के लिए।।
आस है तो साँस है, चलती हवा है इसलिए।
हम बने इक दूजे से, रिश्ता निभाने के लिए।।
कोई पीझे रह जाए, तो कारवाँ रुकता नहीं।
मौत है रुकना बढ़ो ख़ुद को जिलाने के लिए।।
टूटने पर आईना, लाते रुपेला हैं नया।
मैं आया साथी नया, तुमको हँसाने के लिए।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।