व्यंग्यः हर इंसान जिसे छिपाने का प्रयास करता है वही है सत्य
सत्य की परिभाषा को ढूंढते ढूंढते हम जीवन के अंतिम क्षणों में पहुंच जाते हैं और जीवन की अंतिम शव यात्रा में दो शब्द सुनाई देते हैं राम नाम सत्य। तब हम सत्य को समझ पाते हैं, परंतु आज हम वर्तमान समय के अर्थ में सत्य की परिभाषा को समझे तो यह जान सकते हैं कि हर इंसान जिसे छुपाने का प्रयास कर रहा है वही सत्य है। सत्य की अनेक परिभाषाएं हैं जैसे अदृश्य, अप्रत्याशित, विशाल डर ।
आज का मानव चुप्पी साध रहा है क्योंकि उसने जो किया है जो कर रहा है और जो करने की इच्छा रख रहा है उसे छुपा रहा है यही आज का सत्य है। आज के परिपेक्ष्य में एक उदाहरण है जो यह स्पष्ट करता है कि मनुष्य जानबूझकर के सत्य को बताना नहीं चाहता है और उसे छिपाने का प्रयास कर रहा है चाहे उच्च पदाधिकारी हो, धनाढ्य, सत्ताधारी सभी वर्ग।
कुछ ना कुछ छिपाने का प्रयास कर रहे हैं चाहे धन हो, कोरोना सी बीमारी हो, चाहे अपने जीवन में घटित अच्छी बुरी घटना हो और चाहे जीवन से जुड़ा कोई प्रेम-प्रसंग हो। ये सभी वर्ग दूसरों से बताने के लिए कह रहे हैं। निम्न तबके के लोगों को आवाज दे देकर के पुकार रहे हैं कि सत्य सत्य बता दीजिए। किसके पास धन है? किसको कोरोना जैसी बीमारी है? और किसके पास कुछ नहीं है? धन वालों को धन दान करना चाहिए। बीमारी वालों को इलाज करवाना चाहिए। जिसके पास कुछ नहीं है, उनको हमारा साथ देना चाहिए।
हम आप का इलाज करवाएंगे, खाना खिलाएंगे ,आपको काम करने की जरूरत नहीं है, बस हमें बता दीजिए सत्य क्या है? सत्य के बिना कुछ करना संभव नहीं है चाहे इलाज हो, खाने की व्यवस्था हो या धन की व्यवस्था हो आप केवल जीते रहे हैं, मरने हम देंगे नहीं, कुछ करने हम देंगे नहीं। भूखे हम मरने देंगे नहीं, यही तो सत्य है।
सबको एक ही चिंता है वह है कि सत्य का पता ना चल जाए। दिखाने वाले मुखोटे को ही सत्य साबित करने का प्रयास कर रहे हैं, परंतु सत्य सत्य ही हैं। शताब्दियों पुराना सत्य भी समय और परिस्थितियों का सहारा लेकर के अपना वास्तविक चेहरा सबके सामने प्रकट कर देता है। तब लोगों को बड़ा आश्चर्य होता है कि यह भी सत्य है क्या?
क्योंकि सत्य कभी छुपता नहीं है,चाहे लाख कोशिश की जाए, अंत में सत्य को छुपाने वाला छुप जाता है और सत्य उभरकर के सामने आ जाता है। सत्य का दूसरा नाम ही डर है, क्योंकि सत्य से सभी डरते हैं। चाहे सत्ताधारी हो, उच्च पदाधिकारी हो, धनाढ्य हो या निम्न तबके के लोग हो।
सब के सब इसे छुपाना चाहते हैं डर चाहे मृत्यु का हो, धन जाने का हो या बीमारी के कारण सत्य की पहचान का हो, डर डर ही होता है और इसी सत्य को छुपाने के लिए इंसान सत्ता, पद, धन,परिवार, भूमि सभी न्योछावर कर सकता है। परंतु सत्य को किसी के सामने प्रकट ना करके उसे छिपाने का प्रयास करता है। आज व्यक्ति सत्य को पर्दे के पीछे रखना चाहता है, लेकिन उसको पता नहीं है कि सत्य सब देख रहा है। केवल समय और परिस्थिति का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। समय और परिस्थिति ऐसे दो अन्वेषक हैं, जो सत्य की तलाश कर सकते हैं। जिससे शताब्दी पुराना सत्य भी सामने आ जाता है।
आज कोरोना जैसी महामारी ने एक बार फिर सत्य से परिचय करवा दिया। क्योंकि आज व्यक्ति स्वयं सत्य को छुपाते हुए दूसरे व्यक्ति से प्रश्न कर रहा है कि सत्य क्या है? क्या भूखे मरने वाले वास्तव में भूख से मर रहे हैं? क्या धन के अभाव में बीमारी का इलाज नहीं हो रहा है? क्या बीमारी को जानबूझकर के बढ़ाया जा रहा है ? या बीमारी के नाम पर वाहवाही लूटी जा रही है। क्या कोरोना नाम सता का दूसरा विषय है ? ऐसे अनेक प्रश्नों का जवाब हर व्यक्ति चाहता है, परंतु उत्तर सभी को एक ही चाहिए कि सत्य क्या है? जब वह प्रश्न का उत्तर सुनता है तो उसके मन में एक संदेह पैदा होता है वह संदेह है कि कहीं मेरा सत्य सबको पता ना चल जाए और उसे और छिपाने का प्रयास करता है यही तो सत्य हैं।
शब्दांकन कर्ता
नाम- गीता राम मीना
प्राध्यापक हिन्दी
स्वामी विवेकानन्द, राजकीय मॉडल स्कूल लाखेरी के. पाटन बूंदी, राजस्थान।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।